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________________ ५०२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गंगेया! एगिदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा। [३१ प्र.] भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है ? [३१ उ.] गांगेय! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, एकेन्द्रियों में होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होता है। ३२. दो भंते ! तिरिक्खजोणिया० पुच्छा। गंगेया! एगिदिएसु वा होजा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा ५। अहवा एगे एगिदिएसु होज्जा एगे बेइंदिएसु होज्जा । एवं जहा नेरइयपवेसणए तहा तिरिक्खजोणियपवेसणए वि भाणियब्वे जाव असंखेजा। [३२ प्र.] भगवन्! दो तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [३२ उ.] गांगेय ! एकेन्द्रियों में होते हैं, अथवा यावत् पंचेन्द्रियों में होते हैं । अथवा एक एकेन्द्रिय में और एक द्वीन्द्रिय में होता है। जिस प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में कहा, उसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिकप्रवेशनक के विषय में भी असंख्य तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक तक कहना चाहिए। विवेचन तिर्यञ्चों के प्रवेशनक और उनके भंग-तिर्यञ्च एकेन्द्रिय भी होते हैं और पंचेन्द्रिय भी होते हैं। इसलिए उनका प्रवेशनक भी पांच प्रकार का बताया गया है। इसी प्रकार एक तिर्यञ्चयोनिक जीव एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक में तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ उत्पन्न होता है। एक और दो तिर्यञ्चयोनिक जीवों के प्रवेशनक-भंग–एक जीव अनुक्रम से एकेन्द्रियादि पाँच स्थानों में उत्पन्न हो तो उसके पाँच भंग होते हैं। दो जीव भी एक-एक स्थान में साथ उत्पन्न हों तो उनके भी पाँच भंग होते हैं। और द्विकसंयोगी १० भंग होते हैं। तीन से लेकर असंख्यात तिर्यञ्चयोनिक—प्रवेशनक-भंग-तीन से लेकर असंख्यात तिर्यञ्चयोनिक जीवों के प्रवेशनक नैरयिकों के तीन से लेकर असंख्यात तक के प्रवेशनक के समान जानने चाहिए। अन्तर इतना ही है, कि नैरयिक जीव सात नरकपृथ्वियों में उत्पन्न होते हैं, जबकि तिर्यञ्चजीव एकेन्द्रियादि पाँच स्थानों में उत्पन्न होते हैं। इसलिए भंगों की संख्या में भिन्नता है। यह बुद्धिमानों को स्वयं ऊहापोह करके जान लेना चाहिए। यद्यपि एकेन्द्रिय जीव (वनस्पति व निगोद की अपेक्षा से) अनन्त उत्पन्न होते हैं, किन्तु उपर्युक्त प्रवेशनक का लक्षण असंख्यात तक ही घटित हो सकता है। इसलिए असंख्यात तक ही प्रवेशनक कहे गए १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, ५, ४४२-४४३ २. भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा. ४, पृ. १६७० ३. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४५१
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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