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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है । (१३) अथवा एक. रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। (१४) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है। (१५) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, यावत् अधः सप्तमपृथ्वी में होता है । (१६) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमः प्रभा में होता है। (१७) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। (१८) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अध: सप्तमपृथ्वी में होता है। (१९) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तम:प्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है । (२०) अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक प्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है। (२१) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमः प्रभा में और एक अध: सप्तमपृथ्वी में होता है। ४८४ विवेचन — पंच नैरयिकों के पंचसंयोगी भंग—पंच नैरयिकों का पंचसंयोगी विकल्प एवं भंग १. १-१-१-१ एक ही होता है। इस प्रकार सात नरकों के पंचसंयोगी २१ ही विकल्प और २१ ही भंग होते हैं । जिनमें से रत्नप्रभापृथ्वी के संयोग वाले १५, शर्कराप्रभा के संयोग वाले ५ और बालुकाप्रभा के संयोग वाला १ भंग होता है । यों सभी मिलकर १५+५+१ = २१ भंग पंचसंयोगी होते हैं । पांच नैरयिकों के समस्त भंग ——–पाँच नैरयिक जीवों के असंयोगी ७, द्विकसंयोगी ८४, त्रिसंयोगी २१०, चतु:संयोगी १४० और पंचसंयोगी २१ ये सभी मिलकर ७+८४ + २१० + १४० + २१ = ४६२ भंग होते हैं। छह नैरयिकों के प्रवेशनक भंग २१. छब्धंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा० ? पुच्छा । गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७ । अहवा एगे रयण०, पंच सक्करप्पभाए वा होज्जा १ । अहवा एगे रयण०, पंच वालुयप्पभाए वा २ | जाव अहवा एगे रयण, पंच अहेसत्तमाए होज्जा ६ । अहवा दो रयण०, , चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा १-७। जाव अहवा दो रयण०, चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा ६- १२ । अहवा तिण्णि रयण०, तिण्णि सक्कर० १-१३ । एवं एएणं कमेणं जहा पंचण्हं दुयासंजोगो तहा छण्ह वि भाणियव्वो, नवरं एक्को अब्भहिओ संचारेयव्वो जाव अहवा पंच तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा १०५ । अहवा एगे रयण, एगे सक्कर० चत्तारि वालुयप्पभाए होज्जा १ । अहवा एगे रयण, १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४४ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४४
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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