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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र. संयोग से पांच भंग होते हैं।)
अथवा दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् दो रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (इस प्रकार दो, दो, एक के संयोग से ५ भंग होते हैं।)
अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है। इस प्रकार यावत् तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (यों ३-१-१ के संयोग से ५ भंग होते
विवेचन–पांच नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग–त्रिकसंयोगी विकल्प ६ होते हैं। यथा—१-१३,१-२-२,२-१-२,१-३-१,२-२-१ और ३-१-१ ये ६ विकल्प। प्रत्येक नरक के साथ संयोग होने से प्रत्येक के ५-५ भंग होते हैं। यों ७ ४५ = ३५ भंग हुए। इन ३५ भंगों को ६ विकल्पों के साथ गुणा करने से ३५४ ६ - २१० भंग कुल होते हैं।' ___अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और तीन पंकप्रभा में होते हैं। इस क्रम से जिस प्रकार चार नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार पांच नैरयिकों के भी त्रिकसंयोगी भंग जानना चाहिए। विशेष यह है कि वहाँ एक का संचार था, (उसके स्थान पर) यहाँ दो का संचार कहना चाहिए। शेष सब पूर्ववत् जान लेना चाहिए, यावत्-अथवा तीन धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमृथ्वी में होता है, यहाँ तक कहना चाहिए।
त्रिकसंयोगीभंग- इनमें से रत्नप्रभा के संयोग वाले ७०, शर्कराप्रभा के संयोग वाले ६०, बालुकाप्रभा के संयोगवाले ३६, पंकप्रभा के संयोग वाले १८, और धूमप्रभा के संयोग वाले ६ भंग होते हैं। ये सभी ९०+६०+३६+१८+६ = २१० भंग त्रिकसंयोगी होते हैं।
(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते है, इसी प्रकार (२-४) यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (यों १-१-१-२ के संयोग से चार भंग होते हैं।)
(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। इसी प्रकार (२-४) यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है। (यों १-१-२-१ के संयोग से चार भंग होते हैं।)
(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। इस प्रकार (२-४) यावत् एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४४ २. भगवती. भाग ४, (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १६४३