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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पंकप्पभाए होज्जा १-१३। एवं जाव अहवा दो रयण., एगे सक्कर, एगे वालुय० एगे अहेसत्तमाए होज्जा ४-१६। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे पंक०, दो धूमप्पभाए होजा १-१७। एवं जहा चउण्हं चउक्कसंयोगो भणिओ तहा पंचण्ह वि चउक्कसंजोगो भाणियव्वो, नवरं अब्भहियं एगो संचारेयव्वो, एवं जाव अहवा दो पंक०, एगे धूम०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १४०।।
अहवा १-१-१-१-१ एगे रयण सक्कर०, एगे वालुय., एगे पंक०, एगे धूमप्पभाए होज्जा १। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे वालुय., एगे पंक०, एगे तमाए होज्जा २। अहवा एगे रयण., जाव एगे पंक., एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर., एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा ४। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे वालुय०, एगे धूमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ५। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे वालुय., एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ६।अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे तमाए होज्जा ७। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ८। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे पंक०, एगे तम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ९। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर०, एगे धूम०, एगे तम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १०। अहवा एगे रयण., एगे वालुय., एगे पंक०, एगे धूम०, एगे तमाए होज्जा ११। अहवा एगे रयण., एगे वालुय०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १२। अहवा एगे रयण., एगे वालुय., एगे पंक०, एगे तम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १३। अहवा एहे रयण., एगे वालुय०, एगे धूम०, एगे तम. एगे अहेसत्तमाए होज्जा १४। अहवा एगे रयण., एगे पंक०, जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा १५। अहवा एगे सक्कर०, एगे वालुय०, जाव एगे तमाए होज्जा १६।अहवा एगे सक्कर०, एगे वालुय०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १७। अहवा एगे सक्कर, जाव एगे पंक०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १८। अहवा एगे सक्कर०, एगे वालुय०, एगे धूम०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १९। अहवा एगे सक्कर०, एगे पंक०, जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा २०।अहवा एगे वालुय० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा २१। ४६२।
__ [२० प्र.] भगवन्! पांच नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं । इत्यादि पृच्छा।
[२० उ.] गांगेय! रत्नप्रभा में होते हैं ,यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं । (इस प्रकार असंयोगी सात भंग होते हैं।)
(द्विकसंयोगी ८४ भंग-)(१) अथवा एक रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में होते हैं, (२-६) यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं । (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ १-४ शेष पृथ्वियों का योग करने पर ६ भंग होते हैं।