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नवम शतक : उद्देशक - ३२
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(द्विकसंयोगी तिरेसठ भंग ) – (१) अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं, (२) अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं, ( ३-४-५-६ ) इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन अधः सप्तमपृथ्वी में होते हैं । (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ १-३ के ६ भंग होते हैं ।)
(७) अथवा दो रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं, ( ८- ९-१०-११-१२) इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और दो अधः सप्तमपृथ्वी में होते हैं। (यों रत्नप्रभा के साथ २-२ के छह भंग होते हैं ।)
(१३) अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है, (१४-१८) इसी प्रकार यावत् अथवा रत्नप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है । (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ ३-१ के ६ भंग होते हैं । यों रत्नप्रभा के साथ कुल भंग ६+६+६ १८ हुए ।)
(१) अथवा एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभा का आगे की नरकपृथ्वियों के साथ संचार (योग) किया, उसी प्रकार शर्करा प्रभा का भी उसके आगे की नरकों के साथ संचार करना चाहिए। (इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ १-३ के ५ भंग, २-२ के ५ भंग, एवं ३-१ के ५ भंग यों कुल मिलाकर १५ भंग हुए ।)
इसी प्रकार आगे की एक-एक (बालुकाप्रभा पंकप्रभा, आदि) नरकपृथ्वियों के साथ योग करना चाहिए। (इस प्रकार बालुकाप्रभा के साथ भी १-३ के ४, २-२ के ४ और ३-१ के ४ यों कुल १२ भंग पंकप्रभा के साथ १-३ के ३, २-२ के ३ और ३-१ के ३, यों कुल ९ भंग, तथा धूमप्रभा के साथ १-३ के २, २-२ के २, और ३-१ के २, तथा तमः प्रभा के साथ १-३ का १, २ -२ का १ और ३-१ का १ होता है । यावत् अथवा तीन तमः प्रभा में और एक तमस्तमः प्रभा में होता है, यहाँ तक कहना चाहिए। (इस प्रकार द्विकसंयोगी कुल ६३ भंग हुए।)
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(त्रिकसंयोगी १०५ भंग ) – (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते हैं।
(२) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं । ( ३-४-५) इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधः सप्तमपृथ्वी में होते । (इस प्रकार १-१-२ के पांच भंग हुए ।)
(१) अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है, (२ से ५) इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है । इसी प्रकार १-२-१ के पांच भंग हुए।
(१) अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है । (२ से ५) इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और एक अधः सप्तमपृथ्वी में होता है । (इस प्रकार २-१-१ के पांच भंग हुए।)