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नवम शतक : उद्देशक-३२
[४-२] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक जानना चाहिए। ५.[१] संतरं भंते! पुढविकाइया उववजंति, निरंतरं पुढविकाइया उववजंति ? गंगेया ! नो संतरं पुढविकाइया उववजंति, निरंतरं पुढविकाइया उववजंति।
[५-१ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न होते हैं या निरन्तर पृथ्वीकायिक जीव उत्पन्न होते हैं ?
[५-१ उ.] गांगेय! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उत्पन्न नहीं होते किन्तु निरन्तर पृथ्वीकायिक जीव उत्पन्न होते हैं।
[२] एवं जाव वणस्सइकाइया । [५-२] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक जानना चाहिए। ६. बेइंदिया जाव वेमाणिया, एते जहा णेरइया ।
[६] द्वीन्द्रिय जीवों से लेकर वैमानिक देवों तक की उत्पत्ति के विषय में नैरयिकों के समान जानना चाहिए।
७. संतरं भंते ! नेरइया उव्वटंति, निरंतरं नेरइया उव्वटंति ? गंगेया ! संतरं पि नेरइया उव्वटंति, निरंतरं पि नेरइया उव्वति।
[७ प्र.] भगवन्! नैरयिक जीव सान्तर उद्वर्तित होते (मरते) हैं या निरन्तर नैरयिक जीव उद्वर्तित होते हैं ?
[७ उ.] गांगेय! नैरयिक जीव सान्तर भी उद्वर्तित होते हैं और निरन्तर भी उद्वर्तित होते हैं। ८. एवं जाव थणियकुमारा। [८] इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक (के उद्वर्तन के सम्बन्ध में) जानना चाहिए। ९.[१] संतरं भंते ! पुढविक्काइया उब्वटंति०? पुच्छा। गंगेया ! णो संतरं पुढविक्काइया उव्वटॅति, निरंतरं पुढविक्काइया उव्वटेंति। [९-१ प्र.] भगवन्! पृथ्वीकायिक जीव सान्तर उद्वर्तित होते हैं या निरन्तर ?
[९-१ उ.] गांगेय! पृथ्वीकायिक जीवों का उद्वर्तन (मरण) सान्तर नहीं होता, किन्तु निरन्तर उद्वर्तन होता रहता है।
[२] एवं जाव वणस्सइकाइया नो संतरं, निरंतरं उव्वटंति । [९-२] इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीवों तक (के उद्वर्तन के विषय में) जानना चाहिए। ये सान्तर