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________________ नवम शतक : उद्देशक-३१ ४५९ जानता-देखता है। फिर वह सम्यक्त्व, चारित्र, साधुवेष आदि से केवलज्ञान भी प्राप्त कर लेता है। तथारूप अवधिज्ञानी में लेश्या, योग, देह आदि ३४. से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा! छसु लेस्सासु होज्जा, तं जहा—कण्हलेसाए जाव सुक्कलेसाए। [३४ प्र.] भगवन् ! वह (तथारूप अवधिज्ञानी जीव) कितनी लेश्याओं में होता है ? [३४ उ.] गौतम ! वह छहों लेश्याओं में होता है, यथा—कृष्णलेश्या यावत् शुक्ललेश्या। ३५. से णं भंते ! कतिसु णाणेसु होजा? गोयमा ! तिसुवा चउसुवा होज्जा।तिसु होज्जमाणे आभिणिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा, चउसु होज्जमाणे आभिणिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाण-मणपज्जवनाणेसु होज्जा। [३५ प्र.] भंते ! वह (तथारूप अवधिज्ञानी जीव) कितने ज्ञानों में होता है ? [३५ उ.] गौतम! वह तीन या चार ज्ञानों में होता है। यदि तीन ज्ञानों में होता है, तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में होता है। यदि चार ज्ञान में होता है तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान में होता है। ३६. से णं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा ? एवं जोगो उवओगो संघयणं संठाणं उच्चत्तं आउयं च एयाणि सव्वाणि जहा असोच्चाए (सु. १७-२२) तहेव भाणियव्वाणि। [३६ प्र.] भगवन् ! वह (तथारूप अवधिज्ञानी) सयोगी होता है अथवा अयोगी होता है ? (आदि प्रश्न आयुष्य तक)। _[३६ उ.] गौतम ! जैसे 'असोच्चा' के योग, उपयोग, संहनन, संस्थान, ऊँचाई और आयुष्य के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ (सोच्चा के) भी योगादि के विषय में कहना चाहिए। ३७.[१] से णं भंते किं सवेदए० पुच्छा। गोयमा ! सवेदए वा होज्जा, अवदेए वा होज्जा। [३७-१ प्र.] भगवन् ! वह अवधिज्ञानी सवेदी होता है अथवा अवेदी ? [३७-१ उ.] गौतम ! वह सवेदी भी होता है अवेदी भी होता है। [२] जइ अवेदए होज्जा किं उवसंतवेयए होज्जा, खीणवेयए होज्जा? गोयमा ! नो उवसंतवेदए होज्जा, खीणवेदए होज्जा। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४३८
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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