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________________ ४५० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र किसी समय। परिहायमाणेहिं—परिक्षीण होते हुए। परिवड्ढमाणेहिं—बढ़ते-बढ़ते । ओही परावत्तइअवधिज्ञान में परिवर्तित हो जाता है।' पूर्वोक्त अवधिज्ञानी में लेश्या, ज्ञान आदि का निरूपण १५. से णं भंते ! कतिसु लेस्सासु होज्जा ? गोयमा ! तिसु विसुद्धलेस्सासु होजा, तं जहा तेउलेस्साए पम्हलेस्साए सुक्कलेस्साए। [१५ प्र.] भगवन् ! वह अवधिज्ञानी कितनी लेश्याओं में होता है ? [१५ उ.] गौतम! वह तीन विशुद्ध लेश्याओं में होता है, यथा—१. तेजोलेश्या, २. पद्मलेश्या और ३. शुक्ललेश्या। १६. से णं भंते ! कतिसु णाणेसु होज्जा ? गोयमा ! तिसु, आभिणिबोहियनाण-सुयनाण-ओहिनाणेसु होज्जा। [१६ प्र.] भगवन्! वह अवधिज्ञानी कितने ज्ञानों में होता है ? । [१६ उ.] गौतम! वह आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान, इन तीन ज्ञानों में होता है। १७.[१] से णं भंते ! किं सजोगी होज्जा, अजोगी होज्जा ? गोयमा ! सजोगी होज्जा, नो अजोगी होज्जा। [१७-१ प्र.] भगवन् ! वह सयोगी होता है, या अयोगी? [१७-१ उ.] गौतम! वह सयोगी होता है, अयोगी नहीं होता। [२] जइ सजोगी होज्जा किं मणजोगी होज्जा, वइजोगी होज्जा, कायजोगी होज्जा? गोयमा ! मणजोगी वा होज्जा, वइजोगी वा होज्जा, कायजोगी वा होज्जा। [१७-२ प्र.] भगवन् ! यदि वह सयोगी होता है, तो क्या मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है या काययोगी होता है ? [१७-२ उ.] गौतम! वह मनोयोगी होता है, वचनयोगी होता है और काययोगी भी होता है। १८. से णं भंते ! किं सागरोवउत्ते होजा, अणागारोवउत्ते होज्जा ? गोयमा ! सागारोवउत्ते वा होज्जा, अणागारोवउत्ते वा होज्जा। [१८ प्र.] भगवन्! वह साकारोपयोग-युक्त होता है, अथवा अनाकारोपयोग-युक्त होता है ? १. वही. पत्र ४३३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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