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________________ ४४६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवलज्ञान, इन पाँच ज्ञानों का उपार्जन केवली आदि से सुने बिना भी वही कर सकता है, जिसके उस-उस ज्ञान के आवरणरूपं कर्मों का क्षयोपशम तथा क्षय हो गया हो, अन्यथा नहीं कर सकता। केवली आदि से ग्यारह बोलों की प्राप्ति और अप्राप्ति १३.[१]असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वा जाव तप्पक्खियउवासियाए व केवलिपन्नत्तं धम्म लभेज्जा सवणयाए १, केवलंबोहिं बुज्झेज्जा २, केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा ३, केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा ४, केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा ५, केवलेणं संवरेणं संवरेन्जा ६, केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेज्जा ७, जाव केवलं मणपज्जवनाणं उप्पाडेज्जा १०, केवलनाणं उप्पाडेज्जा ११ गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव उवासियाए वा अत्थेगइए केवलिपन्नत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, अत्थेगइए केवलिपन्नत्तं धम्मं नो लभेज्जा सवणयाए १,अत्थेगइए केवलं बोहिं बुज्झेज्जा, अत्थेगइए केवलंबोहिंणो बुझेज्जा २,अत्थेगइए केवलं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वएज्जा, अत्थेगइए जाव नो पव्वएज्जा ३, अत्थेगइए केवलंबंभचेरवासं आवसेज्जा,अत्थेगइए केवलं बंभचेरवासं नो आवसेज्जा ४, अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा ५,एवं संवरेण वि६,अत्थेगइए केवलं आभिणिबोहियनाणं उप्पाडेजा,अत्थेगइए जाव नो उप्पाडेज्जा ७, एवं जाव' मणपज्जवनाणं ८-९-१०, अत्थेगइए केवलनाणं उप्पाडेजा, अत्थेगइए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा ११? __ [१३ प्र.] भगवन् ! १. केवली यावत् केवलि-पाक्षिक-उपासिका के पास से धर्मश्रवण किये बिना ही क्या कोई जीव केवलि-प्ररूपित धर्म-श्रवण-लाभ करता है ? २.शुद्ध बोधि (सम्यग्दर्शन) प्राप्त करता है ? ३. मुण्डित होकर अगारवास से शुद्ध अनगारिता को स्वीकार करता है ? ४. शुद्ध ब्रह्मचार्यवास धारण करता है?५.शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है? ६.शुद्ध संवर से संवत होता है।७-१० शद्ध आभिनिबोधिकज्ञान उत्पन्न करता है, यावत् शुद्ध मनःपर्यवज्ञान तथा ११, केवलज्ञान उत्पन्न करता है ? [१३ उ.] गौतम! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जीव केवलिप्ररूपित धर्म-श्रवण का लाभ पाता है, कोई जीव नहीं पाता है। १ । कोई जीव शुद्ध बोधिलाभ प्राप्त करता है, कोई नहीं प्राप्त करता है। २ । कोई जीव मुण्डित हो कर अगारवास से शुद्ध अनगारधर्म में प्रव्रजित होता है और कोई प्रव्रजित नहीं होता है।३। कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण करता है और कोई धारण नहीं करता है।४। कोई जीव शुद्ध संयम से संयम-यतना करता है और कोई नहीं करता है।५ । कोई जीव शुद्ध संवर से संवृत होता है और कोई जीव संवृत नहीं होता है। ६ । इसी प्रकार कोई जीव आभिनिबोधिकज्ञान का उपार्जन १. 'जाव' शब्द से यहाँ श्रुतज्ञान' और 'अवधिज्ञान' पद जोड़ना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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