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________________ ४४२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आवसेज्जा, अत्थेगइए केवलं बंभचेरवासं नो आवसेज्जा। [५-१ प्र.] भगवन् ! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवास धारण कर पाता है ? [५-१ उ.] गौतम! केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जीव शुद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण कर लेता है और कोई नहीं कर पाता। [२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव नो आवसेज्जा ? गोयमा ! जस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे कडे भवइ सेणं असोच्चा केवलिस्स वा जाव केवलं बंभचेरवासं आवसेज्जा, जस्स णं चरित्तावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो कडे भवति से णं असोच्चाकेवलिस्स वा जाव मुंडे भवित्ता जाव णो पव्वएज्जा, से तेणढेणं गोयमा ! जाव नो पव्वएज्जा। [५-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् कोई जीव धारण नहीं कर पाता? [५-२ उ.] गौतम! जिस जीव ने चारित्रावरणीयकर्म का क्षयोपशम किया है, वह केवली आदि से सुने बिना ही शद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण कर लेता है किन्त जिस जीव ने चारित्रावरणीय कर्म का क्षयोपशम नहीं किया है, वह जीव यावत् शुद्ध ब्रह्मचर्यवास को धारण नहीं कर पाता। इस कारण से ऐसा कहा जाता है कि यावत् वह धारण नहीं कर पाता है।। विवेचन–चारित्रावरणीयकर्म–यहाँ वेद-नोकषायमोहनीयरूप चारित्रावरणीयकर्म विशेष रूप से ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि मैथुनविरमण रूप ब्रह्मचर्यवास के विशेषत: आवारककर्म वे ही हैं।' केवली आदि से शुद्ध संयम का ग्रहण-अग्रहण ६.[१] असोच्चा णं भंते ! केवलिस्स वा जाव केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा ? गोयमा ! असोच्चा णं केवलिस्स जाव उवासियाए वा जाव अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, अत्थेगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा। [६-१ प्र.] भगवन् ! केवली यावत् केवली-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही क्या कोई जीव शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है ? [६-१ उ.] हे गौतम! केवलि यावत् केवलि-पाक्षिक की उपासिका से सुने बिना ही कोई जीव शुद्ध संयम द्वारा संयम-यतना करता है और कोई जीव नहीं करता है। [२]से केणद्वेणं जाव नो संजमेज्जा? १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४३३
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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