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________________ तईआइया तीसंता उद्देसा : अंतरदीवा तृतीय से तीसवें उद्देशक तक : अन्तर्वीप एकोरुक आदि अट्ठाईस अन्तीपक मनुष्य उपोद्घात १. रायगिहे जाव एवं वयासी[१ उपोद्घात] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने इस प्रकार पूछा२. कहि णं भंते ! दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे णामं दीवे पन्नत्ते ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं एवं जहा जीवाभिगमे जाव सुद्धदंतदीवे जाव देवलोगपरिग्गहा णं ते मणुया पण्णत्ता समणाउसो! [२ प्र.] भगवन् ! दक्षिण दिशा का एकोरुक मनुष्यों का एकोरुकद्वीप नामक द्वीप कहाँ बताया गया [२ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण दिशा में (चुल्ल हिमवन्त नामक वर्षधर पर्वत के पूर्व दिशागत चरमान्त (किनारे) से उत्तर-पूर्वदिशा (ईशानकोण) में तीन सौ योजन लवण समुद्र में जाने पर वहाँ दक्षिणदिशा के एकोरुक मनुष्यों का एकोरुक नामक द्वीप है । हे गौतम ! उस द्वीप की लम्बाईचौड़ाई तीन सौ योजन है और उसकी परिधि (परिक्षेप) नौ सौ उनचास योजन से कुछ कम है। वह द्वीप एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड से चारों ओर से वेष्टित (घिरा हुअ) है। इन दोनों (पद्मवरवेदिका और वनखण्ड) का प्रमाण और वर्णन जीवाभिगमसूत्र की तृतीय प्रतिपत्ति के प्रथम उद्देशक के अनुसार इसी क्रम में शुद्धदन्तद्वीप तक का वर्णन (जान लेना चाहिए।) हे आयुष्यमन् श्रमण! इन द्वीपों के मनुष्य देवगतिगामी कहे गए हैं। ३. एवं अट्ठावीसं पि अंतरदीवा सएणं सएणं आयाम-विक्खंभेणं भाणियव्वा, नवरं दीवे दीवे उद्देसओ। एवं सव्वे वि अट्ठावीसं उद्देसगा। सेवं भंते ! सेवं भंते! त्तिः। १. देखिये—जीवाभिगम सूत्र सू. १०९-१२, पत्र १४४-१५६ (आगमो.) 'अधिक पाठ-दाहिणेणं चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स पुरथिमिल्लाओ चरिमंताओ लवणसमुद्दस्स उत्तरपुरस्थिमेणं दिसि भागेणं तिन्नि जोयणसयाइं ओगाहित्ता एत्थ णं दाहिणिल्लाणं एगोरुयमणुस्साणं एगोरुयदीवे नामंदीवे पन्नत्ते,तं गोयमा ! तिन्नि जोयणसयाइं आयामविक्खंभेणं, णव एक्कूणवने जोयणसए किंचिविसेसूणे परिक्खेवेणं पन्नत्ते।सेणंएगाएपउमवरवेड्याए एगेण यवणसंडेणं सव्वओसमंता संपरिक्खित्ते,दोण्ह वि पमाणं वन्नओ य, एवं एएणं कमेणं....।'-भगवती. अ. वृत्ति पत्र ४२८
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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