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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ८. खायी हुई वस्तुएँ किस-किस रूप में परिणत होती हैं ? इसकी चर्चा। ९. एकेन्द्रियादि जीवों के शरीरों को खाने वाले जीवों से सम्बन्धित वर्णन। १०. रोमाहार से सम्बन्धित विवेचन। ११. मन द्वारा तृप्त हो जाने वाले मनोभक्षी देवों से सम्बन्धित तथ्यों का निरूपण। प्रज्ञापना सूत्र के २८ वें पद के प्रथम उद्देशक में इन ग्यारह अधिकारों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है, विस्तार भय से यहाँ सिर्फ सूचना मात्र दी है, जिज्ञासु उक्त स्थल देखें। ॥छठा शतक : द्वितीय उद्देशक समाप्त ॥ १. (क) प्रज्ञापना सूत्र के २८वें आहारपद के प्रथम उद्देशक में वर्णित ११ अधिकारों की संग्रहणी गाथाएँ सचित्ताऽऽहारट्ठी केवति-किं वाऽवि सव्वतो चेव। कतिभागं-सव्वे खलु-परिणामे चेव बोद्धव्वे॥१॥ एगिदियसरीरादी-लोमाहारो तहेव मणभक्खी। एतेसिं तु पदाणं विभावणा होति कातव्वा ॥ २॥ (ख) भगवती. सूत्र टीकानुवाद-टिप्पणयुक्त, खण्ड २, पृ. २६० से २६८ तक। (ग) विशेष जिज्ञासुओं को इस विषय का विस्तृत वर्णन प्रज्ञापनासूत्र के २८वें पद के प्रथम उद्देशक में देखना चाहिए।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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