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अष्टम शतक : उद्देशक-१० के विषय में कहना चाहिए।
२८. अणंता भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा किं दव्वं । एवं चेव जाव सिय दव्वाइं च दव्वदेसा य।
[२८ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के अनन्तप्रदेश क्या एक द्रव्य हैं या एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि (पूर्वोक्त अष्टविकल्पात्मक) प्रश्न.....।
[२८ उ.] गौतम! पहले कहे अनुसार यहाँ कथंचित् बहुत द्रव्य हैं, और बहुत द्रव्यदेश हैं', तक आठों ही भंग कहने चाहिए।
विवेचन–पुद्गलास्तिकाय के एक प्रदेश से लेकर अनन्त प्रदेश तक के विषय में अष्टविकल्पीय प्रश्नोत्तर–प्रस्तुत छह सूत्रों (सू.२३ से २८ तक) में पुद्गलास्तिकाय के एक प्रदेश से लेकर अनन्त प्रदेश तक के विषय में अष्टविकल्पात्मक प्रश्नोत्तर प्ररूपित हैं।
किसमें कितने भंग?—प्रस्तुत सूत्रों में पुद्गलास्तिकाय के विषय में ८ भंग उपस्थित किये गए हैं, जिनमें द्रव्य और द्रव्यदेश के एकवचन और बहुवचन-सम्बन्धी असंयोगी चार भंग हैं और द्विकसंयोगी ४ भंग हैं। जब दूसरे द्रव्य के साथ उसका सम्बन्ध नहीं होता, तब वह द्रव्य (गुणपर्याय-योगी) है और जब दूसरे द्रव्य के साथ उसका सम्बन्ध होता है, तब वह द्रव्य (द्रव्यावयव) है। पुद्गलास्तिकाय के एक प्रदेश में प्रदेश एक ही है, इसलिए उसमें बहुवचनसम्बन्धी दो भंग और द्विकसंयोगी चार भंग, ये ६ भंग नहीं पाए जाते। पुद्गलास्तिकाय के द्विप्रदेशिकस्कन्धरूप से परिणत दो प्रदेशों में उपर्युक्त ८ भंगों में से पहले-पहले के पांच । भंग पाए जाते हैं और पुद्गलास्तिकाय के त्रिप्रदेशिकस्कन्धरूप से परिणत तीन प्रदेशों में पहले-पहले के सात भंग पाये जाते हैं। चार प्रदेशों में आठों ही भंग पाए जाते हैं। चार प्रदेशी से लेकर यावत् अनन्तप्रदेशी पुद्गलास्तिकाय तक में प्रत्येक में आठ-आठ भंग पाए जाते हैं।' लोकाकाश के और प्रत्येक जीव के प्रदेश
२९. केवतिया णं भंते ! लोयागासपएसा पण्णत्ता ? गोयमा! असंखेज्जा लोयागासपएसा पण्णत्ता। . [२९ प्र.] भगवन् ! लोकाकाश के कितने प्रदेश कहे गए हैं ? [२९ उ.] गौतम ! लोकाकाश के असंख्येय प्रदेश कहे गए हैं। ३०. एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स केवइया जीवपएसा पण्णत्ता? गोयमा ! जावतिया लोगागासपएसा एगमेगस्स णं जीवस्स एवतिया जीवपएसा पण्णत्ता।
१. भगवतीसूत्र . अ. वृत्ति, पत्रांक ४२१