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________________ ४०१ अष्टम शतक : उद्देशक-९ [१२५-२] इसी प्रकार वैक्रियशरीर के विषय में कहना चाहिए। [३] तेया-कम्माणं जहेव ओरालियएणं समं भणियं तहेव भाणियव्वं। [१२५-३] तैजस और कार्मणशरीर के विषय में जैसे औदारिकशरीर के साथ कहा, वैसे यहाँ (आहारकशरीर के साथ) भी कहना चाहिए। १२६. जस्स णं भंते ! आहारगसरीरस्स देसबंधे से णं भंते! ओरालियसरीरस्स.? एवं जहा आहारगसरीरस्स सव्वबंधेणं भणियं तहा देसबंधेणं वि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स। [१२६ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के आहारकशरीर का देशबंध है, तो भंते ! क्या वह औदारिकशरीर का बंधक है या अबंधक है ? [१२६ उ.] गौतम! जिस प्रकार आहारकशरीर के सर्वबंध के विषय में कहा, उसी प्रकार उसके देशबंध के विषय में भी कार्मणशरीर तक कहना चाहिए। १२७. [१] जस्स णं भंते! तेयासरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए? गोयमा ! बंधए वा अबंधए वा। [१२७-१ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के तैजसशरीर का देशबंध है, तो भंते ! क्या वह औदारिकशरीर का बंधक है या अबंधक है? [१२७-१ उ.] गौतम! वह बंधक भी है, अबंधक भी है। [२] जइ बंधए किं देसबंधए, सव्वबंधए ? गोयमा! देसबंधए वा, सव्वबंधए वा। । [१२७-२ प्र.] भगवन् ! यदि वह औदारिक शरीर का बंधक है, तो क्या वह देशबंधक है अथवा सर्वबंधक है ? [१२७-२ उ.] गौतम! वह देशबंधक भी है, सर्वबंधक भी है। [३] वेउव्वियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? एवं चेव। [१२७-३ प्र.] भगवन् ! (तैजसशरीर का बंधक जीव) वैक्रियशरीर का बंधक है, अथवा अबंधक है ? [१२७-३ उ.] गौतम! पूर्ववक्तव्यानुसार समझना चाहिए। [४] एवं आहारगसरीरस्स वि।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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