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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सम्मिलित कर लिया जाए तो भी वे देशबंधकों से संख्यातगुण ही होते हैं, क्योंकि सिद्ध आदि अबंधक अनन्त जीव भी अनन्तकायिक आयुष्यबंधक जीवों के अनन्तवें भाग ही होते हैं।
___ जीव जिस समय आयुष्यकर्म के बंधक होते हैं, उस समय उन्हें सर्वबंधक इसलिए नहीं कहा गया है कि जिस प्रकार औदारिकशरीर को बांधते समय जीव प्रथम समय में शरीरयोग्य सब पुद्गलों को एक साथ खींचता है, उस प्रकार अविद्यमान समग्र आयुप्रकृति को नहीं बांधता, इसलिए आयुकर्म का सर्वबंध नहीं होता।'
___ कठिन शब्दों की व्याख्या 'णाणनिह्नवणयाए—ज्ञान की-श्रुत की या श्रुतगुरुओं की निह्नवता (अपलाप) से। णाणंतराएणं-ज्ञान-श्रुत में अन्तराय-शास्त्र-ज्ञान के ग्रहण करने आदि में विघ्न डालना। नाणपओसेणं-ज्ञान-श्रुतादि या ज्ञानवानों के प्रति प्रद्वेष-अप्रीति से। नाणऽच्चासायणाए—ज्ञान या ज्ञानियों की अत्यन्त आशातना-हीलना से। नाणाविसंवायणाजोगेणं-विसंवादना का अर्थ है—अतिशय ज्ञानियों द्वारा प्रतिपादित तथ्य को अन्यथा कहना या विपरीत प्ररूपणा करना। ज्ञान या ज्ञानियों के प्रतिपादित तथ्य को अन्यथा कहना या विपरीत प्ररूपणा करना। ज्ञान या ज्ञानियों के प्रतिपादित तथ्यों में दोषदर्शन रूप अन्यथा व्यापार, तद्प योग ज्ञानविसंवादनयोग से। दंसणपडिणीययाए-दर्शन-चक्षुदर्शनादि की प्रत्यनीकता से। तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए-तीव्र मिथ्यात्व-तीव्र दर्शनमोहनीय के कारण से। तिव्वचरित्तमोहणिज्जयाए–यहाँ कषाय से अतिरिक्त नोकषायरूप चारित्रमोहनीय का ग्रहण करना चाहिए, . क्योंकि तीव्रक्रोधादि कषायचारित्रमोहनीय के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है। साणुक्कोसयाएअनुकम्पायुक्तता से। पांच शरीरों के एक दूसरे के साथ बंधक-अबंधक की चर्चा-विचारणा
१२०. [१] जस्स णं भंते! ओरालियसरीरस्स सव्वबंधे से णं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए?
गोयमा ! नो बंधए, अबंधए।
[१२०-१प्र.] भगवन् ! जिस जीव के औदारिकशरीर का सर्वबंध है, क्या वह जीव वैक्रियशरीर का बंधक है, या अबंधक है ?
[१२०-१ उ.] गौतम! वह बंधक नहीं, अबंधक है। [२]आहारगसरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? गोयमा! नो बंधए, अबंधए। [१२०-२] भगवन् ! (जिस जीव के औदारिकशरीर का सर्वबंध है) क्या वह जीव आहारकशरीर का
१. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ४११-४१२ २. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ४११-४१२