________________
अष्टम शतक : उद्देशक-९
३८७ वहाँ से काल करके गर्भजपचेन्द्रिय में अन्तर्मुहूर्त रह कर पुनः रत्नप्रभापृथ्वी में उत्पन्न होता है, तब प्रथम समय में सर्वबंधक होता है। इसीलिए इसके सर्वबंधक का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त अधिक १० हजार वर्ष होता है।
आनतकल्प का अठारह सागरोपम की स्थिति वाला कोई देव उत्पत्ति के प्रथम समय में सर्वबंधक होता है। वहाँ से च्यव कर वर्षपृथक्त्व (दो वर्ष से नौ वर्ष तक) आयुष्यपर्यंत मनुष्य में रह कर पुनः उसी आनतकल्प में देव होकर प्रथम समय में सर्वबंधक होता है। इसलिए सर्वबंधक का जघन्य अन्तर वर्षपृथक्त्व-अधिक १८ सागरोपम का होता है।
अनुत्तरौपपातिकदेवों में सर्वबंधक और देशबंधक का अन्तर संख्यात सागरोपम है, क्योंकि वहाँ से च्यवकर जीव अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण नहीं करता।
इसके अतिरिक्त वैक्रियशरीरप्रयोगबंध के देशबंध और सर्वबंध का अन्तर मूलपाठ में बतलाया गया है, वह सुगम है। उसकी घटना स्वयमेव कर लेनी चाहिए।
वैक्रियशरीर के देश-सर्वबंधकों का उल्पबहुत्व-वैक्रियशरीरप्रयोग के सर्वबंधक जीव सबसे अल्प हैं, क्योंकि उनका काल अल्प है। उनसे देशबंधक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि सर्वबंधकों की अपेक्षा देशबंधकों का काल असंख्यातगुणा है। उनसे वैक्रियशरीर के अबंधक जीव अनन्तगुणे इसलिए हैं कि सिद्धजीव और वनस्पतिकायिक आदि जीव, जो वैक्रियशरीर के अबंधक हैं, उनसे अनन्तगुणे हैं।' आहारकशरीरप्रयोगबंध का विभिन्न पहलुओं से निरूपण
८३. आहारगसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा! एगागारे पण्णत्ते। [८३ प्र.] भगवन् ! आहारकशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ? [८३ उ.] गौतम! (आहारकशरीरप्रयोगबंध) एक प्रकार का (एकाकार) कहा गया है।
८४. [१] जइ एगागारे पण्णत्ते किं मणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे ? किं अमणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे ?
गोयमा ! मणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे, नो अमणुस्साहारगसरीरप्पयोगबंधे।
[८४-१ प्र.] भगवन् ! आहारकशरीर-प्रयोगबंध एक प्रकार का कहा गया है, तो वह मनुष्यों के होता है अथवा अमनुष्यों (मनुष्यों के सिवाय अन्य जीवों) के होता है ?
[८४-१ उ.] गौतम! मनुष्यों के आहारकशरीरप्रयोगबंध होता है, अमनुष्यों के आहारकशरीरप्रयोगबंध नहीं होता।
६. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ४०३ से ४०७