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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [६७ उ.] गौतम! इसका सर्वबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टत: दो समय तक रहता है तथा देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अन्तर्मुहूर्त तक रहता है।
६८.[१] रयणप्पभापुढविनेरइय. पुच्छा।
गोयमा! सव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं दसवाससहस्साई तिसमयऊणाई, उक्कोसेणं सागरोवमं समऊणं।
[६८-१ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध कितने काल तक रहता है ?
[६८-१ उ.] गौतम! इसका सर्वबंध एक समय तक रहता है और देशबंध जघन्यतः तीन समय कम दस हजार वर्ष तथा उत्कृष्टतः एक समय कम एक सागरोपम तक रहता है।
[२] एवं जाव अहेसत्तमा। नवरं देसबंधे जस्स जा जहनिया ठिती सा तिसमयूणा कायव्वा, जा च उक्कोसिया सा समयूणा।
[६८-२] इसी प्रकार अध:सप्तमनरकपृथ्वी तक जानना चाहिए, किन्तु इतना विशेष है कि जिसकी जितनी जघन्य (आयु-) स्थिति हो, उसमें तीन समय कम जघन्य देशबंध तथा जिसकी जितनी उत्कृष्ट (आयु-) स्थिति हो, उसमें एक समय कम उत्कृष्ट देशबंध जानना चाहिए। .
६९. पंचिंदियतिरिक्खजोणियाण मणुस्साण य जहा वाउक्काइयाणं। [६९] पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च योनिक और मनुष्य का कथन वायुकायिक के समान जानना चाहिए। .
७०. असुरकुमार-नागकुमार० जाव अणुत्तरोववाइयाणं जहा नेरइयाणं, नवरं जस्स जा ठिई सा भाणियव्वा जाव अणुत्तरोववाइयाणंसव्वबंधे एक्कं समयं, देसबंधे जहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं तिसमयूणाई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं समयूणाई।
[७०] असुरकुमार, नागकुमार से अनुत्तरौपपातिकदेवों तक का कथन नैरयिकों के समान जानना चाहिए। परन्तु इतना विशेष है कि जिसकी जितनी स्थिति हो, उतनी कहनी चाहिए यावत् अनुत्तरौपपातिकदेवों का सर्वबंध एक समय और देशबंध जघन्य तीन समय कम इकतीस सागरोपम और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक होता है।
७१. वेउब्वियसरीरप्पयोगबंधंतरंणं भंते ! कालओ केवच्चिरं होई ?
गोयमा! सव्वबंधंतरंजहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अणंतं कालं,अणंताओ जाव आवलियाए असंखेज्जइभागो। एवं देसबंधंतरं पि।
[७१ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ?
[७१ उ.] गौतम! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः अनन्तकाल हैअनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी यावत्-आवलिका के असंख्यातवें भाग के समयों के बराबर पुद्गलपरावर्तन