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________________ अष्टम शतक : उद्देशक - ९ ३७९ [५२ प्र.] भगवन् ! यदि एकेन्द्रिय- वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है, तो क्या वह वायुकायिक एकेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगबंध है अथवा अवायुकायिक एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध है ? [५२ उ.] गौतम ! इस प्रकार के अभिलाप द्वारा (प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें) अवगाहना संस्थानपद में वैक्रियशरीर के जिस प्रकार भेद कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतवैमानिकदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध और अपर्याप्त सर्वार्थसिद्ध अनुत्तरौपपातिक - कल्पातीत- वैमानिकपंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध तक कहना चाहिए। ५३. वेडव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! वीरियसजोगसद्दव्वयाए जाव आउयं वा लद्धिं वा पडुच्च वेडव्वियसरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं वेडव्वियसरीरप्पयोगबंधे । [५३ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है । [५३ उ.] गौतम! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्द्रव्यता, यावत् आयुष्य अथवा लब्धि की अपेक्षा तथा वैक्रियशरीर- प्रयोगनामकर्म के उदय से वैक्रियशरीरप्रयोगबंध होता है । ५४. वाउक्काइयएगिंदियवेडव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं ? गोयमा ! वीरियसजोगसद्दव्वयाए तं चेव जाव लद्धिं वा पडुच्च वाउक्काइयएगिंदियवेउव्विय जाव बंधे। [५४ प्र.] भगवन्! वायुकायिक- एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है। [५४ उ.] गौतम! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्द्रव्यता, यावत् आयुष्य और लब्धि की अपेक्षा से तथा वायुकायिक- एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से वायुकायिक, एकेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध होता है। ५५. [ १ ] रयणप्पभापुढविनेरड्यपंचिंदियवेडव्वियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स एणं ? है। गोयमा ! वीरियसजोगसद्दव्वयाए जाव आउयं वा पडुच्च रयणप्पभापुढवि० जाव बंधे । [५५-१ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी - नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरबंध किस कर्म के उदय से होता [५५ - १ उ.] गौतम ! सवीर्यता, सयोगता, सद्द्द्रव्यता, यावत् आयुष्य की अपेक्षा से तथा रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से रत्नप्रभापृथ्वी-नैरयिक-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध होता है। [ २ ] एवं जाव अहेसत्तमाए ।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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