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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [७-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव करण से (असाता) वेदना वेदते हैं अथवा अकरण से (असाता) वेदना वेदते हैं।
[७-१ उ.] गौतम ! नैरयिक जीव करण से (असाता) वेदना वेदते हैं, अकरण से (असाता) वेदना नहीं वेदते हैं।
[२] से केणठेणं०? .
गोयमा ! नेरइयाणं चउविहे करणे पण्णत्ते, तं जहा—मणकरणे वइकरणे कायकरणे कम्मकरणे। इच्चेएणं चउव्विहेणं असुभेणं करणेणं नेरइया करणतो असायं वेदणं वेदेति नो अकरणतो, से तेणटेणं।
[७-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[७-२ उ.] गौतम ! नैरयिक-जीवों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं, जैसे—मन-करण, वचनकरण, काय-करण और कर्म-करण। उनके ये चारों ही प्रकार के करण अशुभ होने से वे (नैरयिक जीव अशुभ) करण द्वारा असातावेदना वेदते हैं, अकरण द्वारा नहीं। इस कारण से ऐसा कहा गया है कि नैरयिक जीव करण से असातावेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं।
८.[१] असुरकुमारा णं किं करणतो, अकरणतो? गोयमा ! करणतो, नो अकरणतो। [८-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार देव क्या करण से (साता) वेदना वेदते हैं, अथवा अकरण से? [८-१ उ.] गौतम ! असुरकुमार करण से (साता) वेदना वेदते हैं, अकरण से नहीं। [२] से केणट्टेणं०?
गोयमा ! असुरकुमाराणं चउब्विहे करणे पण्णत्ते, तं जहा–मणकरणे वइकरणे कायकरणे कम्मकरणे। इच्चेएणं सुभेणं करणेणं असुरकुमारा णं करणतो सायं वेदणं वेदेति, नो अकरणतो।
[८-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है ?
[८-२ उ.] गौतम ! असुरकुमारों के चार प्रकार के करण कहे गए हैं। यथा—मन-करण, वचनकरण, काय-करण और कर्म-करण। असुरकुमारों के ये चारों करण शुभ होने से वे (असुरकुमार) करण से सातावेदना वेदते हैं, किन्तु अकरण से नहीं।
९. एवं जाव थणियकुमारा। [९] इसी तरह (नागकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। १०. पुढविकाइयाणं एस चेव पुच्छा।नवरं इच्चेएणं सुभासुभेणं करणेणं पुढविकाइया करणतो