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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८ ३४७ 'ग्रहणाकर्ष' की अपेक्षा दिया गया है। अनेक भवों में उपशमश्रेणी की प्राप्ति द्वारा ऐर्यापथिक कर्मपुद्गलों का आकर्ष-ग्रहण करना 'भवाकर्ष' है और एक भव में ऐर्यापथिक कर्मपुद्गलों का ग्रहण करना 'ग्रहणाकर्ष' है। भवाकर्ष की अपेक्षा यहाँ ८ भंग उत्पन्न होते हैं उनका आशय क्रमश: इस प्रकार है-१. प्रथम भंगबांधा था, बांधता है, बांधेगा, यह भवाकर्षपेक्षया उस जीव में पाया जाता है, जिसने गतकाल (किसी पूर्वभव) में उपशमश्रेणी की थी, उस समय ऐर्यापथिक कर्म बांधा था; वर्तमान में उपशम श्रेणी करता है, उस समय इसे बांधता है और अगामी भव में उपशमश्रेणी करेगा, उस समय इसे बांधगा। २.द्वितीय भंग-बांधा था, बांधता है, नहीं बांधेगा—यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशमश्रेणी की थी और ऐर्यापथिक कर्म बांधा था, वर्तमान में क्षपक श्रेणी में इसे बांधता है और फिर इसी भव में मोक्ष चला जाएगा, इसलिए अगामी काल में नहीं बांधेगा।३ तृतीय भंग-बांधा था, नहीं बांधता है, बांधेगा—यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशमश्रेणी की थी, उसमें बांधा था, वर्तमान भव में श्रेणी नहीं करता, अत: यह कर्म नहीं बांधता और भविष्य में उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी करेगा, तब बांधेगा। ४. चौथा भंग-बांधा था, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा—यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जो वर्तमान में चौदहवें गुणस्थान में विद्यमान है। उसने गतकाल (पूर्वकाल) में बांधा था, वर्तमान में नहीं बांधता और भविष्यकाल में भी नहीं बांधेगा।५.पंचम भंग नहीं बांधा.बांधता है.बांधेगा-यह उसी जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशमश्रेणी नहीं की थी, अत: ऐर्यापथिक कर्म नहीं बांधा था, वर्तमान भव में उपशमश्रेणी में बांधता है, अगामी भव में उपशमश्रेणी या क्षपक-श्रेणी में बांधेगा। ६.छठा भंग नहीं बांधा था, बांधता है, नहीं बांधेगा—यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में उपशमश्रेणी नहीं की थी, अत: नहीं बांधा था, वर्तमानभव में क्षपकश्रेणी में बांधता है, इसी भव में मोक्ष चला जाएगा, इसलिए आगामी काल (भव) में नहीं बांधेगा। ७. सप्तम भंग नहीं बांधा था, नहीं बांधता है, बांधेगा—यह भंग उस जीव में पाया जाता है, जो जीव भव्य है, किन्तु भूतकाल में उपशमश्रेणी नहीं की, इसलिए नहीं बांधा था, वर्तमानकाल में भी उपशमश्रेणी नहीं करता, इसलिए नहीं बांधता, किन्तु आगामीकाल में उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी करेगा, तब बांधेगा। ८. अष्टम भंग नहीं बांधा था, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा—यह भंग अभव्य जीव में पाया जाता है, जिसने पूर्वभव में ऐर्यापथिककर्म नहीं बांधा था, वर्तमान में नहीं बांधता और भविष्य में नहीं बांधेगा, क्योंकि अभव्य जीव ने उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी नहीं की, न करता है, और न ही करेगा। एक ही भव में ऐर्यापथिक कर्मपुद्गलों ग्रहणरूप 'ग्रहणाकर्ष' की दृष्टि से १. प्रथम भंग—उस जीव में पाया जाता है, जिसने इसी भव में भूतकाल में उपशमश्रेणी या क्षपकश्रेणी के समय ऐर्यापथिककर्म बांधा था, वर्तमान में बांधता है, भविष्य में बांधेगा। २.द्वितीय भंग तेरहवें गुणस्थान में एक समय शेष रहता है, उस समय पाया जाता है, क्योंकि उसने भूतकाल में बांधा था, वर्तमानकाल में बांधता है और आगामीकाल में शैलेशी अवस्था में नहीं बांधेगा। ३. तृतीय भंग का स्वामी वह जीव है, जो उपशमश्रेणी करके उससे गिर गया है। उसने उपशमश्रेणी के समय ऐर्यापथिककर्म बांधा था, अब वर्तमान में नहीं बांधता और उसी भव में फिर उपशमश्रेणी के समय ऐर्यापथिककर्म बांधा था, अब वर्तमान में नहीं बांधता और उसी भव में फिर उपशमश्रेणी करने पर बांधेगा; क्योंकि एक भव में एक जीव दो बार उपशमश्रेणी कर सकता है। ४. चौथा भंग-चौदहवें गुणस्थान के प्रथम समय में पाया जाता है। सयोगी-अवस्था में उसने ऐर्यापथिककर्म बांधा
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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