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________________ अष्टम शतक : उद्देशक- ८ ३४५ [२० प्र.] भगवन् ! साम्परायिक कर्म (१) किसी जीव ने बांधा, बांधता है और बांधेगा ? (२) बांधा, बांधता है और नहीं बांधेगा? (३) बांधा, नहीं बांधता है और बांधेगा ? तथा (४) बांधा, नहीं बांधता है और नहीं बांधेगा ? [२० उ. ] गौतम ! (१) कई जीवों ने बांधा, बांधते हैं और बांधेंगे; (२) कितने ही जीवों ने बांधा, बाधंते हैं और नहीं बांधेंगे; (३) कितने ही जीवों ने बांधा है, नहीं बांधते हैं और बांधेंगे; (४) कितने ही जीव नही बांधा है, नहीं बांधते हैं और नहीं बांधेंगे । २१. तं भंते ! किं साईयं सपज्जवसियं बंधइ ? पुच्छा सहेव । गोमा ! साईयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं वा सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं वा अपज्जवसियं बंध, णो चेवणं साईयं अपज्जवसियं बंधइ । [२१ प्र.] भगवन् ! साम्परायिक कर्म सादि - सपर्यवसित बांधता है ? इत्यादि (सू. १५ प्रश्न पूर्ववत् करना चाहिए । [२१. उ.] गौतम ! साम्परायिक कर्म सादि सपर्यवसित बांधता है, अनादि सपर्यवसित बांधता है, अनादि- अपर्यवसित बांधता है; किन्तु सादि- अपर्यवसित नहीं बांधता । २२. तं भंते ! किं देसेणं देसं बंधइ ? एवं जहेव इरियावहियाबंधगस्स जाव सव्वेणं सव्वं बंधइ । [२२ प्र.] भगवन् ! साम्परायिक कर्म देश से आत्मदेश को बांधता है ? इत्यादि प्रश्न, (सू. १६ के अनुसार) पूर्ववत् करना चाहिए। अनुसार) [२२ उ.] गौतम ! जिस प्रकार ऐर्यापथिक कर्मबंध के सम्बंध में कहा गया है, उसी प्रकार साम्परायिक कर्मबंध के सम्बंध में भी जान लेना चाहिए, यावत् सर्व से सर्व को बांधता है। विवेचन – विविध पहलुओं से ऐर्यापथिक और साम्परायिक कर्मबंध से सम्बन्धित निरूपण— प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू. १० से २२ तक) में ऐर्यापथिक और साम्परायिक कर्मबंध के सम्बंध में निम्नोक्त छह पहलुओं से विचारणा की गई है - १. ऐर्यापथिक या साम्परायिक कर्म चार गतियों में से किस गति का प्राणी बांधता है ? २. स्त्री, पुरुष, नपुंसक आदि में से कौन बांधता है ? ३. स्त्रीपश्चात्कृत, पुरुषपश्चात्कृत, नपुंसकपश्चात्कृत, एक या अनेक अवेदी में से कौन अवेदी बांधता है ? ४. दोनों कर्मों के बांधने की त्रिकाल सम्बन्धी चर्चा । ५. सादि - सपर्यवसित आदि चार विकल्पों में से कैसे इन्हें बांधता है ? ६. ये कर्म देश से आत्मदेश को बांधते हैं ? इत्यादि प्रश्नोत्तर |
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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