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________________ सत्तमो उद्देसओ : 'अदत्ते' सप्तम उद्देशक : 'अदत्त' अन्यतीर्थिकों के साथ अदत्तादान को लेकर स्थविरों के वाद-विवाद का वर्णन १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नगरे। वण्णओ। गुणसिलए चेइए। वण्णओ, जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अन्नउत्थिया परिवसंति। [१] उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उसका वर्णन औपपातिकसूत्र में नगरीवर्णन के समान जान चाहिए। वहाँ गणुशीलक नामक चैत्य था। उसक वर्णक। यावत् पृथ्वीशिलापट्टक था। उस गुणशीलक चैत्य के आस-पास (न बहुत दूर, न बहुत निकट) बहुत-से अन्यतीर्थिक रहते थे। २. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आदिगरे जाव समोसढे जाव परिसा पडिगया। [२] उस काल और उस समय धर्मतीर्थ की आदि (स्थापना) करने वाले श्रमण भगवान् महावीर यावत् समवसृत हुए (पधारे) यावत् धर्मोपदेश सुनकर परिषद् वापिस चली गई। ३. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जातिसंपन्ना कुलसंपन्ना जहा बितियसए (स. २ उ.५ सु. १२) जाव जीवियासामरणभयविप्पमुक्का समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते उड्ढंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भवोमाणा जाव विहरंति। [३] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के बहुत-से शिष्य स्थविर भगवन्त जातिसम्पन्न, कुलसम्पन्न इत्यादि दूसरे शतक में वर्णित गुणों से युक्त यावत् जीवन की आशा और मरण के भय से विमुक्त थे। वे श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से न अतिदूर, न अतिनिकट ऊर्ध्वजानु (घुटने खड़े रख कर), अधोशिरस्क (नीचे मस्तक नमा कर) ध्यानरूप कोष्ठ को प्राप्त होकर संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते थे। ४. तए णं ते अन्नउत्थिया जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता ते थेरे भंगवतं एवं वयासी–तुब्भे णं अजो ! तिविहं तिविहेणं अस्संजयअविरयअप्पडिहय जहा संत्तमसए बितिए उद्देसए (स. ७ उ. २ सु. १[२]) जाव एगंतबाला यावि भवइ। [४] एक बार वे अन्यतीर्थिक जहाँ स्थविर भगवन्त थे, वहाँ आए। उनके निकट आकर वे स्थविर भगवन्तों से यों कहने लगे—'हे आर्यो ! तुम त्रिविध-त्रिविध (तीन करण, तीन योग से) असंयत, अविरत, अप्रतिहतपापकर्म (पापकर्म के अनिरोधक) तथा पापकर्म का प्रत्याख्यान नहीं किये हुए हो'; इत्यादि जैसे
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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