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________________ २८६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १४७. मणपज्जवनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से समासओ चउविहे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो। दव्वतो णं उज्जुमती अणंते अणंतपदेसिए जहा नंदीए जाव भावओ। _ [१४७ प्र.] भगवन् ! मनःपर्यवज्ञान का विषय कितना कहा गया है ? [१४७ उ.] गौतम ! वह (मनःपर्यवज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का है, वह इस प्रकारद्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से ऋजुमति-मनःपर्यवज्ञानी (मनरूप में परिणत) अनन्तप्रादेशिक अनन्त (स्कन्धों) को जानता-देखता है, इत्यादि जिस प्रकार नन्दीसूत्र में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी 'भावतः' तक कहना चाहिए। १४८. केवलनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो। दव्वतो णं केवलनाणी सव्वदव्वाइं जाणति पासति। एवं जाव भावओ। [१४८ प्र.] भगवन् ! केवलज्ञान का विषयं कितना कहा गया है ? [१४८ उ.] गौतम ! वह (केवलज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से केवलज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव से केवलज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है। १४९. मइअनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पन्नत्ते? गोयमा ! से समासतो चउविहे पण्णत्ते,तं जहा—दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो। दव्वतो णं मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगताइं दव्वाइं जाणति पासति। एवं जाव भावतो मइअन्नाणी मइअन्नाणपरिगते भावे जाणति पासति। [१४९ प्र.] भगवन् ! मति-अज्ञान (मिथ्यामतिज्ञान) का विषय कितना कहा गया है ? [१४९ उ.] गौतम ! वह (मति-अज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार—द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान-परिगत (मति-अज्ञान के विषयभूत) द्रव्यों को जानता और देखता है। इसी प्रकार यावत् भाव से मति-अज्ञानी मति-अज्ञान के विषयभूत भावों को जानता और देखता है। १५०. सूयअन्नाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ? गोयमा ! से समासतो चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा–दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो। दव्वओ णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगयाइं दव्वाइं आघवेइ पण्णवेइ परूवेइ। एवं खेत्ततो कालतो। भावतो णं सुयअन्नाणी सुयअन्नाणपरिगते भावे आघवेइ तं चेव। [१५० प्र.] भगवन् ! श्रुत-अज्ञान (मिथ्याश्रुतज्ञान) का विषय कितना कहा गया है ? [१५० उ.] गौतम ! वह (श्रुत-अज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार—द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से श्रुत-अज्ञानी श्रुत-अज्ञान के विषय भूत द्रव्यों का
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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