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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी; अत्थेगतिया दुअण्णाणी, तिण्णि अण्णाणाणि भयणाए। [९१-२ प्र.] भगवन् ! ज्ञानलब्धिरहित (अज्ञानलब्धि वाले) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[९१-२ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं अज्ञानी हैं। उनमें से कितने ही जीव दो अज्ञान वाले (और कितने ही तीन अज्ञान वाले) होते हैं। इस प्रकार उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं।
९२. [१] आभिणिबोहियणाणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी; अत्थेगतिया दुण्णाणी, चत्तारि नाणाई भयणाए। [७२-१ प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[९२-१ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं ! उनमें से कितने ही जीव दो ज्ञान वाले, कितने ही तीन ज्ञान वाले और कितने ही चार ज्ञान वाले होते हैं। इस तरह उनमें चार ज्ञान भजना से पाए जाते हैं।
[२] तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अण्णाणी ?
गोयमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि। जे नाणी ते नियमा एगनाणी-केवलनाणी। जे अण्णाणी ते अत्यंगतिया दुअन्नाणी, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए।
[९२-२ प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि-रहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[९२-२ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी। जो ज्ञानी हैं, वे नियमतः एकमात्र केवलज्ञान वाले हैं, और जो अज्ञानी हैं, वे कितने ही दो अज्ञान वाले एवं कितने ही तीन अज्ञान वाले हैं। अर्थात्—उनमें तीन अज्ञान भजना से पाये जाते हैं।
९३.[१] एवं सुयनाणलद्धीया वि। ___ [९३-१] श्रुतज्ञानलब्धि वाले जीवों का कथन भी इसी प्रकार (आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि वाले जीवों के समान) करना चाहिए।
[२] तस्स अलद्धीया वि जहा आभिणिबोहियनाणस्स अलद्धीया।
[९३-२] एवं श्रुतज्ञानलब्धिरहित जीवों का कथन आभिनिबोधिकज्ञानलब्धि-रहित जीवों की तरह जानना चाहिए।
१४. [१] ओहिनाणलद्धीया णं० पुच्छा ?
गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी, अत्थेगतिया तिणाणी, अत्थेगतिया चउनाणी। जे तिणाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहियणाणी। जे चउनाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयणाणी ओहिणाणी मणपजवनाणी।
[९४-१ प्र.] भगवन् ! अवधिज्ञानलब्धियुक्त जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? ... [९४-१ उ.] गौतम ! अवधिज्ञानलब्धियुक्त जीव ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कतिपय तीन ज्ञान