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अष्टम शतक : उद्देशक-२
[८६ प्र.] भगवन् ! चारित्रलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ?
[८६ उ.] गौतम ! चारित्रलब्धि पांच प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार–सामायिकचारित्रलब्धि, छेदोपस्थापनिकलब्धि, परिहारविशुद्धलब्धि, सूक्ष्मसम्परायलब्धि और यथाख्यातचारित्रलब्धि।
८७. चरित्ताचरित्तलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता? गोयमा ! एगागारा पण्णत्ता। [८७ प्र.] भगवन् ! चारित्राचारित्रलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ? [८७ उ.] गौतम ! वह एकाकार (एक प्रकार की) कही गई है। ८८. एवं जाव उवभोगलद्धी एगागारा पण्णत्ता।
[८८] इसी प्रकार यावत् (दानलंब्धि, लाभलब्धि, भोगलब्धि) उपभोगलब्धि, ये सब एक-एक प्रकार की कही गई हैं।
८९. वीरियलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ?
गोयमा ! तिविहा पण्णत्ता, तं जहा–बालवीरियलद्धी पंडियवीरियलद्धी बालपंडियवीरियलद्धी।
[८९ प्र.] भगवन् ! वीर्यलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ?
[५९ उ.] गौतम ! वीर्यलब्धि तीन प्रकार की कही गई है, वह इस प्रकार—बालवीर्यलब्धि, पण्डितवीर्यलब्धि और बाल-पण्डितवीर्यलब्धि।
९०. इंदियलद्धी णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता, तं जहा—सोतिंदियलद्धी जाव फासिदियलद्धी। [९० प्र.] भगवन् ! इन्द्रियलब्धि कितने प्रकार की कही गई है ?
[९० उ.] गौतम ! वह पांच प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार श्रोत्रेन्द्रियलब्धि यावत् स्पर्शेन्द्रियलब्धि।
९१.[१] नाणलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी? गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी, अत्थेगतिया दुनाणी। एवं पंच नाणाई भयणाए। [९१-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी ?
[९१-१ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें से कितने ही दो ज्ञान वाले होते हैं। इस प्रकार उनमें पांच ज्ञान भजना (विकल्प) से पाए जाते हैं।
[२] तस्स अलद्धीया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी?