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५५. नोसुहुमानोबादरा णं भंते ! जीवा० ?
जहा सिद्धा (सु. ३८ ) । ४।
[५५ प्र.] भगवन् ! नोसूक्ष्म-नोबादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [५५ उ.] गौतम ! इनका कथन सिद्धों की तरह समझना चाहिए। ५६. पज्जत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी० ?
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
(चतुर्थ द्वार)
जहा सकाइया (सु. ४९ ) ।
[५६ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[५६ उ.] गौतम ! इनका कथन सकायिक (सू. ४९ में कथित ) जीवों के समान जानना चाहिए।
५७. पज्जत्ता णं भंते ! नेरइया किं नाणी० ?
तिण्णि नाणा, तिणिण अण्णाणा नियमा ।
[५७ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिक जीवं ज्ञानी हैं या अज्ञानी ?
[५७ उ.] गौतम ! इनमें नियमतः तीन ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं।
५८. जहा नेरइया एवं जाव थणियकुमारा ।
[५८] पर्याप्तक नैरयिक जीवों की तरह पर्याप्त स्तनितकुमारों तक में ज्ञान और अज्ञान का कथन करना चाहिए ।
[६० प्र.] भगवन् ! पर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[६० उ.] गौतम ! उनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं ।
५९. पुढविकाइया जहा एगिंदिय। एवं जाव चतुरिंदिया ।
[५९] (पर्याप्त)पृथ्वीकायिक जीवों का कथन एकेन्द्रिय जीवों (सू. ४५ में कथित) की तरह करना चाहिए। इसी प्रकार (पर्याप्त ) चतुरिन्द्रिय (अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) तक समझना चाहिए।
६०. पज्जत्ता पं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणिया किं नाणी, अणाणी ? तिणिण अण्णाणा भयणाए ।
तिण्णि नाणा,
६१. मणुस्सा जहा सकाइया (सु. ४१ ) ।
[६१] पर्याप्त मनुष्यों सम्बन्धी कथन सकायिक जीवों (सू. ४९ में कथित ) की तरह करना चाहिए। ६२. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया (सु. ५७ ) ।