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________________ २६० ५५. नोसुहुमानोबादरा णं भंते ! जीवा० ? जहा सिद्धा (सु. ३८ ) । ४। [५५ प्र.] भगवन् ! नोसूक्ष्म-नोबादर जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [५५ उ.] गौतम ! इनका कथन सिद्धों की तरह समझना चाहिए। ५६. पज्जत्ता णं भंते ! जीवा किं नाणी० ? व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (चतुर्थ द्वार) जहा सकाइया (सु. ४९ ) । [५६ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [५६ उ.] गौतम ! इनका कथन सकायिक (सू. ४९ में कथित ) जीवों के समान जानना चाहिए। ५७. पज्जत्ता णं भंते ! नेरइया किं नाणी० ? तिण्णि नाणा, तिणिण अण्णाणा नियमा । [५७ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक नैरयिक जीवं ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [५७ उ.] गौतम ! इनमें नियमतः तीन ज्ञान या तीन अज्ञान होते हैं। ५८. जहा नेरइया एवं जाव थणियकुमारा । [५८] पर्याप्तक नैरयिक जीवों की तरह पर्याप्त स्तनितकुमारों तक में ज्ञान और अज्ञान का कथन करना चाहिए । [६० प्र.] भगवन् ! पर्याप्त पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [६० उ.] गौतम ! उनमें तीन ज्ञान और तीन अज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं । ५९. पुढविकाइया जहा एगिंदिय। एवं जाव चतुरिंदिया । [५९] (पर्याप्त)पृथ्वीकायिक जीवों का कथन एकेन्द्रिय जीवों (सू. ४५ में कथित) की तरह करना चाहिए। इसी प्रकार (पर्याप्त ) चतुरिन्द्रिय (अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय) तक समझना चाहिए। ६०. पज्जत्ता पं भंते ! पंचिदियतिरिक्खजोणिया किं नाणी, अणाणी ? तिणिण अण्णाणा भयणाए । तिण्णि नाणा, ६१. मणुस्सा जहा सकाइया (सु. ४१ ) । [६१] पर्याप्त मनुष्यों सम्बन्धी कथन सकायिक जीवों (सू. ४९ में कथित ) की तरह करना चाहिए। ६२. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा नेरइया (सु. ५७ ) ।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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