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घातक व्यक्ति को वैरस्पर्श की प्ररूपणा ५८५, एकेन्द्रिय जीवों की परस्पर श्वासोच्छ्वाससम्बन्धी प्ररूपणा ५८५, पृथ्वीकायिकादि द्वारा पृथ्वीकायिकादि को श्वासोच्छ्वास करते समय क्रिया-प्ररूपणा ५८७, वायुकाय वृक्षमूलादि कंपाने- गिराने संबंधी क्रिया ५८८ ।
दशम शतक
प्राथमिक
दशम शतकगत चौंतीस उद्देशकों के विषयों का संक्षिप्त परिचय दशम शतक के चौतीस उद्देशकों की संग्रहगाथा
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प्रथम उद्देशक- दिशाओं का स्वरूप ( सूत्र २ -१९ )
५९२-५९८
दिशाओं का स्वरूप ५९२, दिशाएँ: जीव- अजीव रूप क्यों ? ५९२, दिशाओं के दस भेद ५९३, दिशाओं के ये दस नामान्तर क्यों ? ५९४, दश दिशाओं की जीव- अजीव सम्बन्धी वक्तव्यता ५९४, दिशाविदिशाओं का आकार एवं व्यापकत्व ५९५, आग्नेयी विदिशा का स्वरूप ५९६, जीवदेश सम्बन्धी भंगजाल ५९६, शेष दिशा-विदिशाओं की जीव- अजीव प्ररूपणा ५९७, शरीर के भेद - प्रभेद तथा सम्बन्धित निरूपण ५९८ । द्वितीय उद्देशक- संवृत अनगार (सूत्र १ - ९ ) ५९९-६०६
वीचिपथ और अवीचिपथ स्थित संवृत अनगार को लगने वाली क्रिया ५९९, ऐर्यापथिकी और साम्परायिकी क्रिया के अधिकारी ६००, वीयीपंथे : चार रूप : चार अर्थ ६००, अवीयीपंथे : चार अर्थ ६००, योनियों के भेद-प्रभेद, प्रकार एवं स्वरूप ६०१, योनि का निर्वचनार्थ ६०१, योनि के सामान्यतया तीन प्रकार ६०१, प्रकारान्तर से योनी के तीन भेद ६०१, अन्य प्रकार से योनि के तीन भेद ६०२, उत्कृष्टता - निकृष्टता की दृष्टि से योनि के तीन प्रकार ६०२, चौरासी लाख जीवयोनियाँ ६०२, विविध वेदना : प्रकार एवं स्वरूप ६०२, • प्रकारान्तर से त्रिविधि वेदना ६०३, वेदना के पुनः तीन भेद हैं ६०३, वेदना के दो भेद ६०३, वेदना के दो भेद : प्रकारान्तर से ६०४, मासिक भिक्षुप्रतिमा की वास्तविक आराधना ६०४, भिक्षुप्रतिमा : स्वरूप और प्रकार ६०४, अकृत्यसेवी भिक्षु : कब अनाराधक कब आराधक ? ६०५, आराधक - विराधक भिक्षु की छह कोटियां ६०६ । तृतीय उद्देशक - आत्मऋद्धि (सूत्र १ - १९ ) ६०७-६१३
देवों की देवावासों की उल्लंघनशक्ति : अपनी और दूसरी ६०७, देवों का मध्य में से होकर गमनसामर्थ्य ६०८, विमोहित करने का तात्पर्य ६१०, देव - देवियों का एक दूसरे के मध्य में से होकर गमनसामर्थ्य ६१०, दौड़ते हुए अश्व के 'खु - खु' शब्द का कारण ६१२, प्रज्ञापनीभाषा : मृषा नहीं ६१३, बारह प्रकार की भाषाओं का लक्षण ६१३ ।
चतुर्थ उद्देशक - श्यामहस्ती (सूत्र १-१४ )
६१५-६२२
श्यामहस्ती अनगार : परिचय एवं प्रश्न का उत्थान ६१५, चमरेन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देव : अस्तित्व, कारण एवं सदैव स्थायित्व ६१६, त्रायस्त्रिंशक देवों का लक्षण ६१९, बलीन्द्र के त्रायस्त्रिंशक देवों की नित्यता का प्रतिपादन ६१९, धरणेन्द्र से माहघोषेन्द्र - पर्यत के त्रायस्त्रिंशक देवों की नित्यता का निरूपण ६२०, शक्रेन्द से अच्युतेन्द्र तक के त्रायस्त्रिंशक : कौन और कैसे ? ६२१, त्रायस्त्रिंशक देव : किन देवनिकायों में ?६२२ ।
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