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________________ २३७ अष्टम शतक : उद्देशक-१ है और आरम्भसत्यविषयक मन:प्रयोग को आरम्भसत्यमनःप्रयोग कहते हैं। इसी प्रकार संरम्भ, समारम्भ और अनारम्भ को जोड़कर तदनुसार अर्थ कर लेना चाहिए।' दो द्रव्य सम्बन्धी प्रयोग-मिश्र-विस्त्रसापरिणत पदों के मनोयोग आदि के संयोग से निष्पन्न भंग ८०. दो भंते ! दव्वा किं पयोगपरिणया ? मीसापरिणया ? वीससापरिणया ? गोयमा ! पओगपरिणया वा १। मीसापरिणया वा २। वीससापरिणया वा ३। अहवेगे पओगपरिणए, एगे मीसापरिणए ४। अहवेगे पओगप०, एगे वीससापरि०५।अहवेगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए एवं ६। [८० प्र.] भगवन् ! दो द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते [८० उ.] गौतम ! वे १. प्रयोगपरिणत होते हैं, या २ मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा ३. विस्त्रसापरिणत होते हैं, अथवा ४. एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा मिश्रपरिणत होता है; या ५. एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा द्रव्य विस्रसापरिणत होता है, अथवा ६. एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है और दूसरा विस्रसापरिणत होता है। इस प्रकार छह भंग होते हैं। ८१. जदि पओगपरिणया किं मणप्पयोगपरिणया ? वइप्पयोग० ? कायप्पयोगपरिणया ? गोयमा ! मणप्पयोगपरिणता वा १। वइप्पयोगप० २। कायप्पयोगपरिणया वा ३। अहवेगे मणप्पयोगपरिणते, एगे वयप्पयोगपरिणते ४। अहवेगे मणप्पयोगपरिणए, एगे कायप्पओगपरिणए ५।अहवेगे वयप्पयोगपरिणते, एगे कायप्पओगपरिणते ६। [८१ प्र.] यदि वे दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं ? [८१ उ.] गौतम ! वे (दो द्रव्य) या तो (१) मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या (२) वचन-प्रयोग-परिणत होते हैं, अथवा (३) कायप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा (४) उनमें से एक द्रव्य मन:प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा वचनप्रयोगपरिणत होता है, अथवा (५) एक द्रव्य मन:प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा कायप्रयोगपरिणत होता है या (६) एक द्रव्य वचनप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा कायप्रयोगपरिणत होता है। ८२. जदि मणप्पयोगपरिणता किं सच्चमणप्पयोगपरिणता? असच्चमणप्पयोगप०? सच्चामोसमणप्पयोगप० ? असच्चाऽमोसमणप्पयोगप० ? गोयमा ! सच्चमणप्पयोगपरिणया वा जाव असच्चामोसमणप्पयोगपरिणया वा १-४। अहवेगे सच्चमणप्पयोगपरिणए, एगे मोसमणप्पओगपरिणए ५।अहवेगे सच्चमणप्पओगपरिणते, एगे सच्चा१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३३५-३३६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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