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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१ २३३ ७२. जइ मीसापरिणए किं मणमीसापरिणए ? वयमीसापरिणए ? कायमीसापरिणए ? गोयमा ! मणमीसापरिणए वा, वयमीसापरिणते वा, कायमीसापरिणए वा। [७२ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है, तो क्या वह मनोमिश्रपरिणत होता है, या वचनमिश्रपरिणत होता है, अथवा कायमिश्रपरिणतं होता है ? । [७२ उ.] गौतम ! वह मनोमिश्रपरिणत भी होता है, वचनमिश्रपरिणत भी होता है, कायमिश्र-परिणत भी होता है। ७३. जदि मणमीसापरिणए किं सच्चमणमीसापरिणए ? मोसमणमीसापरिणए ? जहा पओगपरिणए तहा मीसापरिणए वि भाणियव्वं निरवसेवं जाव पज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय जाव देवपंचिंदियकम्मासरीरगमीसापरिणए वा,अपजत्तसव्वट्ठसिद्धअणु० जाव कम्मासरीरमीसापरिणए वा। [७३ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य मनोमिश्रपरिणत होता है, तो क्या वह सत्यमनोमिश्रपरिणत होता है, मृषामनोमिश्रपरिणत होता है, सत्य-मृषामनोमिश्रपरिणित होता है, अथवा असत्य-अमृषामनोमिश्रपरिणत होता [७३ उ.] गौतम ! जिस प्रकार प्रयोगपरिणत एक द्रव्य के सम्बंध में कहा गया है, उसी प्रकार मिश्रपरिणत एक द्रव्य के विषय में भी पर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियकार्मणशरीर-कायमिश्रपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक-कल्पातीत वैमानिकदेवपंचेन्द्रियकार्मणशरीर-कायमिश्रपरिणत होता है तक कहना चाहिए। ७४. जदि वीससापरिणए किं वण्णपरिणए गंधपरिणए रसपरिणए फासपरिणए संठाणपरिणए? गोयमा ! वण्णपरिणए वा गंधपरिणए वा रसपरिणए वा फासपरिणए वा संठाणपरिणए वा। __ [७४ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य विस्रसा (स्वभाव से) परिणत होता है, तो क्या वह वर्णपरिणत होता है, गन्धपरिणत होता है, रसपरिणत होता है, स्पर्शपरिणत होता है, अथवा संस्थानपरिणत होता है ? । [७४ उ.] गौतम ! वह वर्णपरिणत होता है, या गन्धपरिणत होता है, अथवा रसपरिणत होता है, या स्पर्शपरिणत होता है, या संस्थानपरिणत होता है। ७५. जदि वण्णपरिणए किं कालवण्णपरिणए नील जाव सुक्किलवण्णपरिणए ? गोयमा ! कालवण्णपरिणए वा जाव सुक्किलवण्णपरिणए वा। [७५ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य वर्णपरिणत होता है तो क्या वह कृष्णवर्ण के रूप में परिणत होता है, अथवा नीलवर्ण के रूप में अथवा यावत् शुक्लवर्ण के रूप में परिणत होता है ?
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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