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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! पुढविक्काइयएगिदिय जाव पयोगपरिणए वा जाव वणस्सइकाइयएगिंदिय जाव परिणए वा।
[५७ प्र.] भगवन् ! जो एक द्रव्य एकेन्द्रिय-औदारिक-शरीर-काय-प्रयोग-परिणत होता है तो क्या वह पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-काय-प्रयोग-परिणत होता है, अथवा यावत् वह वनस्पतिकायिकएकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[५७ उ.] हे गौतम ! वह पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है अथवा यावत् वह वनस्पतिकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है।
५८.जदि पुढविकाइयएगिदियओरालियसरीर जाव परिणए किं सुहमपुढविकाइय जाव परिणए? बादरपुढविक्काइयएगिदिय जाव परिणए ?
गोयमा ! सुहुमपुढविक्काइयएगिंदिय जाव परिणए वा, बादरपुढविक्काइय जाव परिणए वा।
[५८ प्र.] भगवन् ! यदि वह एक द्रव्य पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, तो क्या वह सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा बादरपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[५८ उ.] गौतम ! वह सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है अथवा बादर-पृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है। ___ ५९. [१] जदि सुहुमपुढविकाइय जाव परिणए किं, पजत्तसुहमपुढवि जाव परिणए ? अपजत्तसुहुमपुढवी जाव परिणए ?
गोयमा ! पजत्तसुहुमपुढविकाइय जाव परिणए वा, अपजत्तसुहुमपुढविकाइय जाव परिणए वा।
__ [५९-१ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[५९-१ उ.] गौतम ! वह पर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत भी होता है, या वह अपर्याप्त-सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत भी होता है।
[२] एवं बादरा वि।
[५९-२] इसी प्रकार बादर-पृथ्वीकायिक (एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत एक द्रव्य) के विषय में भी (पर्याप्त-अपर्याप्त-प्रकार) समझ लेना चाहिए।
[३] एवं जाव वणस्सइकाइयाणं चउक्कओ भेदो।
[५९-३] इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक तक सभी के चार-चार भेद (सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त) के विषय में (पूर्ववत्) कथन करना चाहिए।