SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टम शतक : उद्देशक-१ २२७ ५४. जदि वइप्पयोगपरिणए किं सच्चवइप्पयोगपरिणए मोसवयप्पयोगपरिणए ? एवं जहा मणप्पयोगपरिणए तहा वयप्पयोगपरिणए वि जाव असमारंभवयप्पयोगपरिणए वा। [५४ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य वचनप्रयोगपरिणत होता है तो, क्या वह सत्य-वचन-प्रयोगपरिणत होता है, मृषा-वचनप्रयोगपरिणत होता है, सत्य-मृषा-वचनप्रयोगपरिणत होता है अथवा असत्य-अमृषावचनप्रयोगपरिणत होता है ? । [५४ उ.] गौतम ! जिस प्रकार (पूर्वोक्त विशेषणों से युक्त) मनःप्रयोगपरिणत के विषय में कहा है, उसी प्रकार (पूर्वोक्त-सर्व-विशेषणयुक्त) वचन-प्रयोगपरिणत के विषय में भी कहना चाहिए यावत् वह असमारम्भ वचन-प्रयोगपरिणत भी होता है यहाँ तक कहना चाहिए। ५५. जदि कायप्पयोगपरिणए किं ओरालियसरीरकायप्पयोगपरिणए १? ओरालियमीसासरीरकायप्पयो० २ ? वेउव्वियसरीरकायप्प० ३ ? वेउव्वियमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए ४ ? आहारगसरीरकायप्पओगपरिणए५?आहारकमीसासरीरकायप्पयोगपरिणए ६ !कम्मासरीरकायप्पओगपरिणए ७? गोयमा ! ओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए वा जाव कम्मासरीरकायप्पओगपरिणए वा। [५५ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह औदारिक-शरीरकायप्रयोगपरिणत होता है, औदारिकमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, वैक्रियशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, वैक्रियमिश्रशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, आहारकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है, आहारकमिश्रशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है अथवा कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? [५५ उ.] गौतम ! वह एक द्रव्य औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् वह कार्मणशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है। ५६. जदि ओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं एगिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए एवं जाव पंचिंदियओरालिय जाव परि० । गोयमा ! एगिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए वा बेंदिय जाव परिणए वा जाव पंचिंदिय जाव परिणए वा। [५६ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, तो क्या वह एकेन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, या द्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है अथवा यावत् पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ? [५६ उ.] गौतम ! वह एक द्रव्य एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, या द्वीन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा यावत् पञ्चेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है। ५७. जदि एगिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं पुढविक्काइयएगिदिय जाव परिणए जाव वणस्सइकाइयएगिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए वा ?
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy