________________
अट्ठमं सयं : अष्टम शतक
प्राथमिक
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र के अष्टम शतक में पुद्गल, आशीविष, वृक्ष, क्रिया, आजीव, प्रासुक, अदत्त, प्रत्यनीक, बंध और आराधना; ये दस उद्देशक हैं। प्रथम उद्देशक में परिणाम की दृष्टि से पुद्गल के तीन प्रकारों का, नौ दण्डकों द्वारा प्रयोगपरिणत पुद्गलों का, फिर मिश्रपरिणत पुद्गलों का तथा विस्रसापरिणत पुद्गलों के भेद-प्रभेद का निरूपण है। तत्पश्चात् मन-वचन-काया की अपेक्षा विभिन्न प्रकार से प्रयोग, मिश्र और विस्रसा से एक, दो, तीन, चार आदि द्रव्यों के परिणमन का वर्णन है । फिर परिमाणों की दृष्टि से पुद्गलों के अल्पबहुत्व की चर्चा है। द्वितीय उद्देशक में आशीविष, उसके दो मुख्य प्रकार उसके अधिकारी जीवों एवं उनके विषसामर्थ्य का निरूपण है। तत्पश्चात् छद्मस्थ द्वारा सर्वभाव से ज्ञान के अविषय और केवली द्वारा सर्वभावेन ज्ञान के विषय के १० स्थानों का, ज्ञान-अज्ञान के स्वरूप एवं भेद-प्रभेद का, औधिक जीवों, चौवीस दण्डकवर्ती जीवों एवं सिद्धों में ज्ञान-अज्ञान का प्ररूपण, गति आदि ८ द्वारों की अपेक्षा लब्धिद्वार, उपयोगादि बीस द्वारों की अपेक्षा ज्ञानी-अज्ञानी का प्ररूपण एवं ज्ञानी और अज्ञानी के स्थितिकाल, अन्तर और अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। तृतीय उद्देशक में संख्यातजीविक और अनन्तजीविक वृक्षों का, छिन्नकच्छप आदि के टुकड़ों
के बीच का जीवप्रदेश स्पृष्ट और शस्त्रादि के प्रभाव से रहित होने का एवं रत्नप्रभादि पृथ्वियों के . चरमत्व-अचरमत्व आदि का निरूपण किया गया है।
चतुर्थ उद्देशक में क्रियाओं और उनसे सम्बन्धित भेद-प्रभेदों आदि का अतिदेशपूर्वक निर्देश है। पंचम उद्देशक में सामायिक आदि साधना में उपविष्ट श्रावक का सामान स्वकीय न रहने पर भी स्वकीयत्व का तथा श्रमणोपासक के व्रतादि के लिए ४१ भंगों का तथा आजीविकोपासकों के सिद्धान्त, नाम, आचार-विचार और श्रमणोपासकों की उनसे विशेषता का वर्णन है, अन्त में चार प्रकार के देवलोकों का निरूपण है। छठे उद्देशक में तथारूप श्रमण या माहन को प्रासुक-अप्रासुक, एषणीय-अनेषणीय आहारदान का श्रमणोपासक को फल-प्राप्ति का, गृहस्थ के द्वारा स्वयं एवं स्थविर के निमित्त कह कर दिये गये पिण्ड-पात्रादि की उपभोगमर्यादा का निरूपण है तथा अकृत्यसेवी किन्तु आराधनातत्पर निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी की विभिन्न पहलुओं से आराधकता की सयुक्तिक प्ररूपणा है। तत्पश्चात् जलते दीपक तथा घर में जलने वाली वस्तु का विश्लेषण है और एक जीव या बहुत जीवों को परकीय एक या बहुत-से शरीरों की अपेक्षा होने वाली क्रियाओं का निरूपण है।