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________________ १९६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ज्ञातपुत्र अरूपीकाय बतलाते हैं। जैसे कि—धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकशास्तिकाय और जीवास्तिकाय। केवल एक पुद्गलास्तिकाय को ही श्रमण ज्ञातपुत्र रूपीकाय और अजीवकाय कहते हैं। उनकी यह बात कैसे मानी जाए? ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव गुणसिलए समोसढे जाव परिसा पडिगता। ___ [४] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर यावत् गुणशील चैत्य में पधारे, वहाँ उनका समवसरण लगा। यावत् परिषद् (धर्मोपदेश सुनकर) वापिस चली गई। ५. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवतो महावीरस्स जेठे अंतेवासी इंदभूति णामं अणगारे गोतमगोत्ते णं जहा बितियसते नियंठुद्देसए (श. २ उ.५ सू. २१-२३) जाव भिक्खायरियाए अडमाणे अहापजत्तं भत्त-पाणं पडिग्गाहित्ता रायगिहातो जाव अतुरियमचवलमसंभंते जाव रियं सोहेमाणे सोहेमाणे तेसिं अन्नउत्थियाणं अदूरसामंतेणं वीइवयति। _ [५] उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर के ज्येष्ठ अन्तेवासी गौतमगोत्रीय इन्द्रभूति नामक अनगार, दूसरे शतक के निर्ग्रन्थ उद्देशक में कहे अनुसार भिक्षाचरी के लिए पर्यटन करते हुए यथापर्याप्त आहार-पानी ग्रहण करके राजगृह नगर से यावत् त्वरारहित, चपलतारहित सम्भ्रान्ततारहित, यावत् ईर्यासमिति का शोधन करते-करते अन्यतीर्थिकों के पास से होकर निकले। ६.[१] तए णं ते अन्नउत्थिया भगवं गोयमं अदूरसामंतेणं वीइवयमाणं पासंति, पासेत्ता अन्नमन्न सद्दावेंति, अन्नमन्नं सद्दावेत्ता एवं वयासी—"एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमा कहा अविप्पकडा, अयं च णं गोतमे अम्हं अदूरसामंतेणं वीतिवयति, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं गोतमे एयमढं पुच्छित्तए" त्ति कटु अन्नमन्नस्स अंतिए अयमढं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव भगवं गोतमे तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता भगवं गोतमं एवं वदासी–एवं खलु गोयमा ! तव धम्मायरिए धम्मोवदेसए समणे णायपुत्ते पंच अत्थिकाए पण्णवेति, तं जहा—धम्मत्थिकायं जाव आगासत्थिकायं, तं चेव रूविकायं अजीवकायं पण्णवेति, से कहमेयं भंते ! गोयमा ! एवं ? [६-१] तत्पश्चात् उन अन्यतीर्थिकों ने भगवान् गौतम को थोड़ी दूर से जाते हुए देखा। देखकर उन्होंने एक-दूसरे को बुलाया। बुलाकर एक-दूसरे से इस प्रकार कहा—हे देवानुप्रियो ! बात ऐसी है कि (पंचास्तिकाय सम्बन्धी) यह बात हमारे लिए अप्रकट-अज्ञात है। यह (इन्द्रभूति) गौतम हमसे थोड़ी ही दूर पर जा रहे हैं। इसलिए हे देवानुप्रियो ! हमारे लिए गौतम से यह अर्थ (बात) पूछना श्रेयस्कर है, ऐसा विचार करके उन्होंने परस्पर (एक-दूसरे से) इस सम्बंध में परामर्श किया। परामर्श करके जहाँ भगवान् गौतम थे, वहाँ उनके पास आए। पास आ कर उन्होंने भगवान् गौतम से इस प्रकार पूछा [प्र.] हे गौतम ! तुम्हारे धर्माचार्य, धर्मोपदेशक श्रमण ज्ञातपुत्र पंच अस्तिकाय की प्ररूपणा करते हैं,
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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