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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कहिं उववन्ने ?
गोयमा ! सुकुले पच्चायाते।
[२३ प्र.] भगवन् ! वरुण नागनत्तुआ का प्रिय बालमित्र काल के अवसर पर कालधर्म पा कर कहाँ गया ?, कहाँ उत्पन्न हुआ?
[२३ उ.] गौतम ! वह सुकुल में (मनुष्यलोक में अच्छे कुल में) उत्पन हुआ है। २४. से णं भंते ! ततोहितो अणंतरं उववट्ठिता कहिं गच्छिहिति ? कहिं उववजिहिति ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति।
सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति।
॥सत्तमसए : नवमो उद्देसो समत्तो ॥ __[२४ प्र.] भगवन् ! वह (वरुण का बालमित्र) वहाँ से (आयु आदि का क्षय होने पर) काल करके कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा?
[२४ उ.] गौतम! वह भी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा , यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है,' यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरने लगे।
विवेचन–वरुण की देवलोक में और उसके मित्र की मनुष्यलोक में उत्पत्ति और अन्त में दोनों की महाविदेह से सिद्धि का निरूपण-पूर्वोक्त दोनों आराधक योद्धाओं में उज्ज्वल भविष्य का इन चार सूत्रों द्वारा प्रतिपादन किया गया है।
निष्कर्ष-रथमूसलसंग्राम में ९६ लाख मनुष्य मारे गये। उनमें से एक वरुण नागनत्तुआ देवलोक में गया और उसका बालमित्र मनुष्यगति में गया, शेष सभी प्रायः नरक या तिर्यंचगति के मेहमान बने।
॥ सप्तम शतक : नवम उद्देशक समाप्त ।