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________________ सप्तम शतक : उद्देशक - ९ हय-गय-रह जाव सन्नाहेंति, सन्नाहित्ता जेणेव वरुणे नागनत्तुए जाव पच्चप्पिणंति । " [२०-४] तदनन्तर उन कौटुम्बिक पुरुषों ने उसकी आज्ञा स्वीकार एवं शिरोधार्य करके यथाशीघ्र छत्रसहित एवं ध्वजासहित चार घंटाओं वाला अश्वरथ, यावत् तैयार करके उपस्थित किया। साथ ही घोड़े, हाथी, रथ एवं प्रवर योद्धाओं ये युक्त चतुरंगिणी सेना को यावत् सुसज्जित किया और सुसज्जित करके यावत् वरुण नागनत्तुआ को उसकी आज्ञा वापिस सौंपी। १८९ “[ ५ ] तए णं से वरुणे नागनत्तुए जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छति जहा कूणिओ (सु.८ ) जाव पायच्छित्ते सव्वालंकारविभूसिते सन्नद्धबद्ध० सकोरेंटमल्लदामेणं जाव धरिज्जमाणेणं अणेगगणनायंग जाव दूयसंधिवाल० सद्धिं संपरिवुडे मज्जणघरातो पडिनिक्खमति, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उट्ठाणसाला जेणेव चातुघंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चातुर्घटं आसरहं दुरूहइ, दुरूहित्ता हय-गय-रह जाव संपरिवुडे महता भडचडगर० जाव परिक्खित्ते जेणेव रहमुसले संगामे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहमुसलं संगामं ओयाते । [२०-५] तत्पश्चात् वह वरुण नागनप्तृक, जहाँ स्नानगृह था, वहाँ आया । इसके पश्चात् यावत् कौतुक और मंगलरूप प्रायश्चित (विघ्ननाशक) किया, सर्व अलंकारों से विभूषित हुआ, कवच पहना, कोरंटपुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, इत्यादि सारा वर्णन कूणिक राजा की तरह कहना चाहिए । फिर अनेक गणनायकों, दूतों और सन्धिपालों के साथ परिवृत होकर वह स्नानगृह से बाहर निकल कर बाहर की उपस्थानशाला में आया और सुसज्जित चातुर्घण्ट अश्वरथ पर आरूढ हुआ ! रथ पर आरूढ होकर अश्व, गज, रथ और योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना के साथ, यावत् महान सुभटों के समूह से परिवृत होकर जहाँ रथमूसल-संग्राम होने वाला था, वहाँ आया । वहाँ आकर वह रथमूसल-संग्राम में उतरा । “[ ६ ] तए णं से वरुणे णागनत्तुए रहमुसलं संगामं ओयाते समाणे अयमेयारूव अभिग्गहं अभिगिves - कप्पति मे रहमुसलं संगामं संगामेमाणस्स जे पुव्विं पहणति से पडिहणित्तए, अवसेसे नो कप्पतीति। अयमेतारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हित्ता रहमुसलं संगामं संगामेति । [२०-६] उस समय रथमूसल-संग्राम में प्रवृत्त होने के साथ ही वरुण नागनप्तृक ने इस प्रकार इस रूप का अभिग्रह (नियम) किया- मेरे लिए यही कल्प (उचित नियम) है कि रथमूसल संग्राम में युद्ध करते हुए जो मुझ पर पहले प्रहार करेगा, उसे ही मुझे मारना (प्रहत करना) है, (अन्य) व्यक्तियों को नहीं। इस प्रकार का यह अभिग्रह करके वह रथमूसल - संग्राम में प्रवृत्त हो गया । “[ ७ ] तए णं तस्स वरुणस्स नागनत्तुयस्स रहमुसलं संगामं संगामेमाणस्स एगे पुरिसे सरिसए सरिसत्तए सरिसव्वए सरिसभंडमत्तोवगरणे रहेणं पडिरहं हव्वमागते । [२०-८] उसी समय रथमूसल-संग्राम में जूझते हुए वरुण नाग- नतृक के रथ के सामने प्रतिरथी के रूप में एक पुरुष शीघ्र ही आया, जो उसी के सदृश, उसी के समान त्वचा वाला था, उसी के समान उम्र का और उसी के समान अस्त्र-शस्त्रादि उपकरणों से युक्त था ।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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