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सप्तम शतक : उद्देशक-९ इस संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम कहा जाता है।
१२. महासिलाकंटए णं भंते ! संगामे वट्टमाणे कति जणसतसाहस्सीओ वहियाओ ? गोयमा ! चउरासीतिं जणसतसाहस्सीओ वहियाओ। [१२ प्र.] भगवन् ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उसमें कितने लाख मनुष्य मारे गए ? [१२ उ.] गौतम ! महाशिलाकण्टक-संग्राम में चौरासी लाख मनुष्य मारे गये।
१३. ते णं भंते ! मणुया निस्सीला जाव निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा सारुट्ठा परिकुविया समरवहिया अणुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गता ? कहिं उववना ?
गोयमा ! ओसन्नं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववन्ना।
[१३ प्र.] भगवन् ! शीलरहित यावत् प्रत्याख्यान एवं पौषधोपवास से रहित, रोष (आवेश) में भरे हुए, परिकुपित, युद्ध में घायल हुए और अनुपशान्त वे (युद्ध करने वाले) मनुष्य मृत्यु के समय मर कर कहाँ गए, कहाँ उत्पन्न हुए ?
[१३ उ.] गौतम ! ऐसे मनुष्य प्राय: नरक और तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न हुए हैं।
विवेचन–महाशिलाकण्टक-संग्राम के स्वरूप, उसमें मानवविनाश एवं उनकी मरणोत्तरगति का निरूपण—प्रस्तुत तीन सूत्रों (सू. ११ से १३ तक) में महाशिलाकण्टक के स्वरूप तथा उसमें मृत मानवों की संख्या एवं उनकी गति के विषय में किये गए प्रश्नों का समाधान अंकित किया गया है।
___ फलितार्थ युद्ध में धन, जन, संस्कृति और संतति के विनाश के अतिरिक्त सबसे बड़ी हानि शासकों द्वारा अपने अहंपोषण, राज्यविस्तार, वैभवप्राप्ति या ईर्ष्या को चरितार्थ करने के लिए युद्ध के झौंके हुए सैनिकों के अज्ञानवश; आवेशवश एवं त्याग-प्रत्याख्यानरहित मरण के कारण दुर्गति की प्राप्ति, मानव जैसे अमूल्य जन्म की असफलता है। रथमूसलसंग्राम में जय-पराजय का, उसके स्वरूप का तथा उसमें मृत मनुष्यों की संख्या, गति आदि का निरूपण
१४. णायमेतं अरहया, सुतमेतं अरहता, विण्णयमेतं अरहता रहमुसले संगामे रहमुसले संगामे। रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे के जइत्था ? के पराजइत्था ?
गोयमा ! वजी विदहेपुत्ते चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था, नव मल्लई नव लेच्छई पराजइत्था।
[१४ प्र.] भगवन् ! अर्हन्त भगवान् ने जाना है, इसे प्रत्यक्ष किया है और विशेषरूप से जाना है कि यह रथमूसलसंगाम है। (अत: मेरा प्रश्न यह है कि) भगवन् ! यह रथमूसलसंग्राम जब हो रहा था तब कौन जीता, कौन हारा?