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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र महाशिलाकण्टक संग्राम में कूणिक की जीत कैसे हुई ? – चेटक राजा ने भी देखा कि कूणिक युद्ध किये बिना नहीं मानेगा और जब उन्होंने सुना कि कूणिक ने युद्ध में सहायता के लिए 'काल' आदि विमातृजात दसों भाइयों को चेटक राजा के साथ युद्ध करने के लिए बुलाया है, तब उन्होंने भी शरणागत की रक्षा एवं न्याय के लिए अठारह गणराज्यों के अधिपति राजाओं की अपनी-अपनी सेनासहित बुलाया । वे सब ससैन्य एकत्रित हुए। दोनों ओर की सेनाएँ युद्धभूमि में आ डटीं । घोर संग्राम शुरू हुआ। चेटक राजा का ऐसा नियम था कि वे दिन में एक ही बार एक ही बाण छोड़ते, और उनका छोड़ा गया बाण कभी निष्फल नहीं जाता था। पहले दिन कूणिक का भाई कालकुमार सेनापति बनकर युद्ध करने लगा, किन्तु चेटक राजा के एक ही बाण से वह मारा गया। इससे कूणिक की सेना भाग गई। इस प्रकार दस दिन में चेटकराजा ने कालकुमार आदि दसों भाइयों को मार गिराया। ग्यारहवें दिन कूणिक की बारी थी । कूणिक ने सोचा- 'मैं भी दसों भाइयों की तरह चेटकराजा के आगे टिक न सकूंगा। मुझे भी वे एक ही बाण में मार डालेंगे।' अतः उसने तीन दिन तक युद्ध स्थगित रखकर चेटकराजा को जीतने के लिए अष्टमतप (तेला) करके देवाराधना की। अपने पूर्वभव के मित्र देवों का स्मरण किया, जिससे शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र दोनों उसकी सहायता के लिए आए। शक्रेन्द्र ने कूणिक से कहा- चेटकराजा परम श्रावक है, इसलिए उसे मैं मारूंगा नहीं, किन्तु तेरी रक्षा करूंगा । अतः शकेन्द्र ने कूणिक की रक्षा कने के लिए वज्र सरीखे अभेद्य कवच की विकुर्वणा की और चमरेन्द्र ने महाशिलाकण्टक और रथमूसल, इन दो संग्रामों की विकुर्वणा की । इन दोनों इन्द्रों की सहायता के कारण कूणिक की शक्ति बढ़ गई । वास्तव में इन्द्रों की सहायता से ही महाशिलाकण्टक संग्राम में कूणिक की विजय हुई, अन्यथा विजय में सन्देह था । महाशिलाकण्टक संग्राम के स्वरूप, उसमें मानवविनाश और उनकी मरणोत्तरगति का निरूपण ११. के केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चत्ति ' महासिलाकंटए संगामे महासिलाकंटए संगामे' ? गोयमा ! महासिलाकंटए णं संगामे वट्टमाणे जे तत्थ आसे वा हत्थी वा जोहे वा सारही वा तणेण वा कट्ठेण वा पत्तेण वा सक्कराए वा अभिहम्मति सव्वे से जाणति 'महासिलाए अहं अभिहते महासिलाए अहं अभिहते'; से तेणट्ठेणं गोयमा ! महासिलाकंटए संगामे महासिलाकंटए संगामे । १८४ [११ प्र.] भगवन् ! इस 'महाशिलाकण्टक' संग्राम को महाशिलाकण्टक संग्राम क्यों कहा जाता है ? [११ उ.] गौतम ! जब महाशिलाकण्टक संग्राम हो रहा था, तब उस संग्राम में जो भी घोड़ा, हाथी, योद्धा या सारथि आदि तृण से, काष्ठ से, पत्ते से या कंकर आदि से आहत होते, वे सब ऐसा अनुभव करते थे कि हम महाशिला (के प्रहार) से मारे गए हैं। अर्थात् — महाशिला हमारे ऊपर आ पड़ी है। हे गौतम ! इस कारण १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३१७ (ख) औपपातिकसूत्र पंत्राक ६६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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