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________________ चतुर्थ उद्देशक-सप्रदेश (सूत्र १-२५) ३७-५२ कालादेश से चौवीस दण्डक के एक-अनेक जीवों की सप्रदेशता-अप्रदेशता का निरूपण ३७, आहारक आदि से विशेषित जीवों में सप्रदेश-अप्रदेश-वक्तव्यता ३८, सप्रदेश आदि चौदह द्वार ४२, कालादेश की अपेक्षा जीवों के भंग ४२, समस्त जीवों में प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्याना-प्रत्याख्याना के होने, जानने, करने तथा आयुष्यबन्ध के सम्बंध में प्ररूपणा ५०, प्रत्याख्यान-ज्ञानसूत्र का आशय ५२, प्रत्याख्यानकरणसूत्र का आशय ५२, प्रत्याख्यानादि निर्वर्तित आयुष्यबन्ध का आशय ५२, प्रत्याख्यानादि से सम्बन्धित संग्रहणी गाथा ५२। पंचम उद्देशक (सूत्र १-४३) ५३-६७ तमस्काय के सम्बंध में विविध पहलुओं से प्रश्नोत्तर ५३, तमस्काय की संक्षिप्त रूपरेखा ५८, कठिन शब्दों की व्याख्या ५८, विविध पहलुओं से कृष्णराजियों के प्रश्नोत्तर ५९, तमस्काय और कृष्णराजि के प्रश्नोत्तरों में कहाँ सादृश्य, कहाँ अन्तर ?६३, कृष्णराजियों के आठ नामों की व्याख्या ६३, लोकान्तिक देवों से सम्बन्धित विमान, देव-स्वामी, परिवार, संस्थान, स्थिति, दूरी आदि का विचार ६३, विमानों का अवस्थान ६६, लोकान्तिक देवों का स्वरूप ६६, लोकान्तिक विमानों का संक्षिप्त निरूपण ६७। छठा उद्देशक-भव्य (सूत्र १-८) ६८-७२ __ चौवीस दण्डकों में आवास, विमान आदि की संख्या का निरूपण ६८, चौवीस दण्डकों के समुद्घातसमवहत जीव की आहारादि प्ररूपणा ६९, कठिन शब्दों के अर्थ ७२।। सप्तम उद्देशक-शालि (सूत्र १-९) ७३-८१ कोठे आदि में रखे हुए शालि आदि विविध धान्यों की योनिस्थिति-प्ररूपणा ७३, कठिन शब्दों के अर्थ ७४, मुहूर्त से लेकर शीर्षप्रहेलिका-पर्यन्त गणितयोग्य काल-परिमाण ७४, गणनीय काल ७५, पल्योपम, सागरोपम आदि औपमिककाल का स्वरूप और परिमाण ७६, पल्योपम का स्वरूप और प्रकार (उद्धारपल्योपम, अद्धापल्योपम, क्षेत्रपल्योपम) ७८, सागरोपम के प्रकार (उद्धारसागरोपम, अद्धासागरोपम, क्षेत्रसागरोपम) ७९, सुषमसुषमाकालीन भारतवर्ष के भाव-अविर्भाव का निरूपण ८० । अष्ठम उद्देशक - पृथ्वी ( सूत्र १-९) ८२-९१ रत्नप्रभादि पृथ्वियों तथा सर्व देवलोंकों में गृह-ग्राम-मेघादि के अस्तित्व और कर्तृत्व की प्ररूपणा ८२, वायुकाय, अग्निकाय आदि का अस्तित्व कहाँ है, कहाँ नहीं ? ८६, महामेघ-संस्वेदन-वर्षणादि कहाँ कौन करते हैं ? ८६, जीवों के आयुष्यबंध के प्रकार एवं जाति-नाम-निधत्तादि बारह दण्डकों की चौवीस दण्डकीय जीवों में और बंध दोनों में अभेद ८९, नामकर्म से विशेषित १२ दण्डकों की व्याख्या ८९, लवणादि असंख्यात द्वीप-समुद्रों का स्वरूप और प्रमाण ९०, लवणसमुद्र का स्वरूप ९०, अढाई द्वीप और दो समुद्रों से बाहर के समुद्र ९०, द्वीप-समुद्रों के शुभ नामों का निर्देश ९१, ये द्वीप-समुद्र उद्धार, परिणाम और उत्पाद वाले ९१ ।। नवम उद्देशक-कर्म (सूत्र १-१३) ९२-९८ ज्ञानावरणीयबंध के साथ अन्य कर्मबन्ध-प्ररूपणा ९२, बाह्य पुद्गलों के ग्रहणपूर्वक महर्द्धिकादि [१४]
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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