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________________ सप्तम शतक : उद्देशक - २ १२९ आवीचिमरण प्रतिक्षण होता है, परन्तु यहाँ उस मरण की विवक्षा नहीं की गई है, किन्तु समग्र आयु की समाप्तिरूप मरण की विवक्षा है। अपश्चिम अर्थात् जिसके पीछे कोई संल्लेखनादि कार्य करना शेष नहीं, ऐसी अन्तिम मारणान्तिक (आयुष्यसमाप्ति के अन्त मरणकाल में) की जाने वाली शरीर और कषाय आदि को कृश करने वाली तपस्याविशेष 'अपश्चिम- मारणान्तिक संल्लेखना ' है । उसकी जोषणा स्वीकार करने की आराधना अखण्डकाल (आयुः समाप्ति) तक करना अपश्चिम-मारणान्तिक-संल्लेखना - जोषणा - आराधना है। यहाँ दिग्व्रतादि सात गुण अवश्य देशोत्तर - गुणरूप हैं, किन्तु संल्लेखना के लिए नियम नहीं है, क्योंकि यह देशोत्तरगुणवाले के लिए देशोत्तरगुणरूप और सर्वोत्तरगुण वाले के लिए सर्वोत्तरगुणरूप है। तथापि देशोत्तरगुणवाले को भी अन्तिम समय में यह अवश्यकरणीय है, यह सूचित करने के लिए देशोत्तरगुण के साथ इसका कथन किया गया है। जीव और चौबीस दण्डकों में मूलगुण-उत्तरगुणप्रत्याख्यानी - अप्रत्याख्यानी-वक्तव्यता ९. जीवा णं भंते ! किं मूलगुणपच्चक्खाणी, उत्तरगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी ? गोयमा ! जीवा मूलगुणपच्चक्खाणी वि, उत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि । [९ प्र.] भगवन् ! क्या जीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ? [९ उ.] गौतम ! जीव (समुच्चयरूप में) मूलगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी भी हैं, , और अप्रत्याख्यानी भी हैं । १०. नेरइया णं भंते ! किं मूलगुणपच्चक्खाणी० ? पुच्छा । गोयमा ! नेरइया नो मूलगुणपच्चक्खाणी, नो उत्तरगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी । [१० प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिकजीव मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं, उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं या अप्रत्याख्यानी हैं ? [१० उ.] गौतम ! नैरयिक जीव न तो मूलगुणप्रत्याख्यानी हैं और न उत्तरगुणप्रत्याख्यानी हैं, किन्तु अप्रत्याख्यानी हैं। १. ११. एवं जाव चउरिंदिया | [११] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों पर्यन्त कहना चाहिए। १२. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणुस्सा य जहा जीवा (सू. ९ ) [१२] पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों और मनुष्यों के विषय में (समुच्चय - औधिक) जीवों की तरह कहना चाहिए। १३. वाणमंतर - जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरइया (सू. १० ) भगवती अ. वृत्ति, पत्रांक २९७
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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