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________________ १२२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कहा गया है। २०. अह भंते ! सत्थातीतस्स सत्थपरिणामितस्स एसियस्स वेसियस्स सामुदाणियस्स पाणभोयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ___ गोयमा ! जे णं निग्गंथे वा निग्गंथी वा निक्खित्तसत्थमुसले ववगतमाला-वण्णविलेवणे ववगतचुय-चइय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं अकयमकारियसंकप्पियमणाहूतमकीतकडमणुदिटुं नवकोडीपरिसुद्धं दसदोसविप्पमुक्कं उग्गम-उप्पायणेसणासुपरिसुद्धं वीतिंगालं वीतधूमं संजोयणादोस विप्पमुक्कं असुरसुरं अचवचवं अदुतमविलंबित अपरिसाडिं अक्खोवं-जण-वणाणुलेवणभूत संयमजातामायावत्तियं संजमभारवहणट्ठयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेति; एस णं गोतमा ! सस्थातीतस्स सत्थपरिणामितस्स जाव पाण-भोयणस्स अट्ठे पन्नत्ते। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥सत्तम सए : पढमो उद्देसो समत्तो॥ [२० प्र.] भगवन् ! शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, व्येषित, सामुदायिक भिक्षारूप पान-भोजन का क्या अर्थ कहा गया है ? [२० उ.] गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी शस्त्र और मूसलादि का त्याग किये हुए हैं, पुष्प-माला और चन्दनादि (वर्णक) के विलेपन से रहित हैं, वे यदि उस आहार को करते हैं जो (भोज्य वस्तु में पैदा होने वाले) कृमि आदि जन्तुओं से रहित, जीवच्युत और जीवविमुक्त (प्रासुक), है, जो साधु के लिए नहीं बनाया गया है, न बनवाया गया है, जो असंकल्पित (आधाकर्मादि दोष रहित) है अनाहूत (आमंत्रणरहित) है, अफीतकृत (नहीं खरीदा हुआ) है, अनुद्दिष्ट (औद्देशिक दोष रहित) है, नवकोटिविशुद्ध है, (शंकित आदि) दस दोषों से विमुक्त है, उद्गम (१६ उद्गमदोष) और उत्पादना (१६ उत्पादन) सम्बन्धी एषणा दोषों से रहित सुपरिशुद्ध है, अंगारदोषरहित है, धूमदोषरहित है, संयोजनादोषरहित है तथा जो सुरसुर और चपचप शब्द से रहित, बहुत शीघ्रता और अत्यन्त विलम्ब से रहित, आहार का लेशमात्र भी छोड़े बिना, नीचे न गिराते हुए, गाड़ी की धुरी के अंजन अथवा घाव पर लगाए जाने वाले लेप (मल्हम) की तरह केवल संयममात्रा के निर्वाह के लिए और संयम-भार को वहन करने के लिए, जिस प्रकार सर्प बिल में (सीधा) प्रवेश करता है, उसी प्रकार जो आहार करते हैं, तो हे गौतम ! वह शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित यावत् पान-भोजन का अर्थ है। ___'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते विवेचन–अंगारादि दोष से युक्त और मुक्त, तथा क्षेत्रातिक्रान्तादि दोषयुक्त एवं शस्त्रातीतादियुक्त पान-भोजन का अर्थ—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १७ से २० तक) में अंगार, धूम और संयोजनादोष से युक्त तथा मुक्त पान-भोजन का क्षेत्र, काल,मार्ग और प्रमाण को अतिक्रान्त पान-भोजन का एवं शस्त्रातीतादि पानभोजन का अर्थ प्ररूपित किया गया है। ___अंगारादि दोषों का स्वरूप—साधु के द्वारा गवेषणैषणा और ग्रहणैषणा से लाए हुए, निर्दोष आहार साधुओं के मण्डल (माण्डले) में बैठकर सेवन करते समय ये दोष लगते हैं, इसलिए इन्हें ग्रासैषणा (मांडला
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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