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सप्तम शतक : प्राथमिक
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सातवें उद्देशक में उपयोगपूर्वक गमनादि करने वाले अनगार की क्रिया की, कामभोग एवं कामभोगी के स्वरूप की, छद्मस्थ, अवधिज्ञानी एवं केवली आदि में भोगित्व की, असंज्ञी व समर्थ जीवों द्वारा अकाम एवं प्रकामनिकरण की प्ररूपणा की गई है।
आठवें उद्देशक में केवल संयमादि से सिद्ध होने के निषेध की, हाथी और कुंथुए के समान जीवत्व की, नैरयिकों की १० वेदनाओं की, हाथी और कुंथुए में अप्रत्याख्यानी-क्रिया की समानता की प्ररूपणा है ।
नौवें उद्देशक में असंवृत अनगार द्वारा विकुर्वणासामर्थ्य का तथा महाशिलाकण्टक एवं रथमूसल संग्राम का सांगोपांग विवरण प्रस्तुत किया गया है।
दसवें उद्देशक में कालोदायी द्वारा पंचास्तिकायचर्चा और सम्बुद्ध होकर प्रव्रज्या स्वीकार से लेकर संल्लेखनापूर्वक समाधिमरण तक का वर्णन है।
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं, विसमाणुक्कमो ४४ से ४८ तक