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________________ छठा शतक : उद्देशक - १० १०१ [३ प्र.] भगवन् ! क्या जीव नैरयिक है या नैरयिक जीव है । [३ उ.] गौतम ! नैरयिक तो नियमतः जीव है और जीव तो कदाचित् नैरयिक भी हो सकता है, कदाचित् नैरयिक से भिन्न भी हो सकता है। ४. जीवे णं भंते! असुरकुमारे असुरकमारे जीवे ? गोतमा ! असुरकुमारे ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय असुरकुमारे, सिय णो असुरकुमारे। [४ प्र.] भगवन् ! क्या जीव, असुरकुमार है या असुरकुमार जीव है ? [४ उ.] गौतम ! असुरकुमार तो नियमतः जीव है, किन्तु जीव तो कदाचित् असुरकुमार भी होता है, कदाचित् असुरकुमार नहीं भी होता । ५. एवं दंडओ णेयव्वो जाव वेमाणियाणं । [५] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक सभी दण्डक (आलापक) कहने चाहिए । ६. जीवति भंते ! जीवे ? जीवे जीवति ? गोयमा ! जीवति ताव नियमा जीवे, जीवे पुण सिय जीवति, सिय नो जीवति । वह [६ प्र.] भगवन् ! जो जीता — प्राण धारण करता है, वह जीव कहलाता है, या जो जीव है, जीता- - प्राण धारण करता है ? [६ उ.] गौतम ! जो जीता — प्राण धारण करता है, वह तो नियमत: जीव कहलाता है, किन्तु जो जीव होता है, वह प्राण धारण करता (जीता) भी है और कदाचित् प्राण धारण नहीं भी करता । ७. जीवति भंते ! नेरतिए ? नेरतिए जीवति ? गोयमा ! नेरतिए ताव नियमा जीवति, जीवति पुण सिय नेरतिए, सिय अनेरइए । [६ प्र.] भगवन् ! जो जीता है, वह नैरयिक कहलाता है, या जो नैरयिक होता है, वह जीता-प्राण धारण करता है ? [६ उ.] गौतमा ! नैरयिक तो नियमतः जीता है, किन्तु जो जीता है, वह नैरयिक भी होता है, और अनैरयिक भी होता है। ८. एवं दंडओ नेयव्वो जाव वेमाणियाणं । [८] इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्यन्त सभी दण्डक (आलापक) कहने चाहिए । ९. भवसिद्धीए णं भंते ! नेरइए ? नेरइए भवसिद्धीए ? गोयमा ! भवसिद्धीए सिय नेरइए, सिय अनेरइए । नेरतिए वि य सिय भवसिद्धीए, सिय अभवसिद्धीए । [९ प्र.] भगवन् ! जो भवसिद्धीक होता है, वह नैरयिक होता है, या जो नैरयिक होता है, वह भवसिद्धिक होता है ?
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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