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________________ ९८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र यावत् विचरण करने लगे। विवेचन—अविशुद्ध लेश्यायुक्त देवों द्वारा अविशुद्ध-विशुद्ध लेश्यावाले देवादि को जाननेदेखने सम्बन्धी प्ररूपणा—प्रस्तुत सूत्र में मुख्यतया १२ विकल्पों द्वारा देवों द्वारा देव, देवी एवं अन्यतर को जानने-देखने के सम्बंध में प्ररूपणा की गई है। तीन पदों के बारह विकल्प (१) अविशुद्धलेश्यायुक्त देव अनुपयुक्त आत्मा से अशुद्धलेश्यावाले देवादि को ... (२) अविशुद्धलेश्यायुक्त देव अनुपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को . . (३) अविशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्त आत्मा से अशुद्धलेश्यावाले देवादि को ......... (४) अविशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को ..... (५) अविशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अशुद्धलेश्यावाले देवादि को ....... (६) अविशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को ........" (७) विशुद्धलेश्यायुक्त देव अनुपयुक्त आत्मा से अविशुद्धलेश्यावाले देवादि कों ..... (८) विशुद्धलेश्यायुक्त देव अनुपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को .... (९) विशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्त आत्मा से अविशुद्धलेश्यावाले देवादि को ......... (१०) विशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को ... (११) विशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अविशुद्धलेश्यावाले देवादि को .. (१२) विशुद्धलेश्यायुक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्धलेश्यावाले देवादि को ... अविशुद्धलेश्यावाले देव विभंगज्ञानी होते हैं, इसलिए पूर्वोक्त ६ विक्लपों में उक्त देव मिथ्यादृष्टि होने के कारण देव, देवी आदि को नहीं जान-देख सकते तथा सातवें-आठवें विकल्प में उक्त देव अनुपयुक्तता के कारण जान-देख नहीं पाते। किन्तु अन्तिम चार विकल्पों में उक्त देव एक तो सम्यग्दृष्टि हैं, दूसरे उनमें से ९वें, १०वें विकल्पों में उक्त देव उपयुक्त भी हैं तथा ११ वें, १२वें विकल्प में उक्त देव उपयुक्तानुपयुक्त में उपयुक्तपन सम्यग्दृष्टि एवं सम्यग्ज्ञान का कारण है। इसलिए पिछले चारों विकल्प वाले देव देवादि को जानते-देखते हैं।' ॥ छठा शतक : नवम उद्देशक समाप्त॥ १. (क) भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक २८४ (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचनयुक्त) भा. २, पृ. १०६६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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