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छठा शतक : उद्देशक-९
३. अविशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानतादेखता है ?
४. अविशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानतादेखता है ?
५. अविशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
६. अविशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
७. विशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्त आत्मा द्वारा, अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
८. विशुद्ध लेश्यावाला देव अनुपयुक्त आत्मा द्वारा विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता देखता है ?
[आठों प्रश्नों का उत्तर ] गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है। (अर्थात्-नहीं जानता-देखता।)
[९. प्र.] भगवन् ! विशुद्ध लेश्यावाला देव क्या उपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
[९ उ.] हाँ, गौतम ! ऐसा देव जानता-देखता है।
[१० प्र.] इसी प्रकार क्या विशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्त आत्मा से विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
[१० उ.] हाँ, गौतम ! वह जानता-देखता है।
[११ प्र.] विशुद्ध लेश्यावाला देव उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से अविशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ? ___ [१२ प्र.] विशुद्ध लेश्यावाला देव, उपयुक्तानुपयुक्त आत्मा से, विशुद्ध लेश्यावाले देव, देवी या अन्यतर को जानता-देखता है ?
[११-१२ उ.] हाँ, गौतम ! वह जानता-देखता है। यों पहले (निचले) जो आठ भंग कहे गए उन आठ भंगों वाले देव नहीं जानते-देखते। किन्तु पीछे (ऊपर के) कहे गये चार भंगों वाले देव जानते-देखते हैं।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर श्री गौतम स्वामी .......