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छठा शतक : उद्देशक-७
८१ प्रकार उस समय के भरतक्षेत्र के लिए उत्तरकुरु की वक्तव्यता के समान, यावत् बैठते हैं, सोते हैं, यहाँ तक वक्तव्यता कहनी चाहिए। उस काल (अवसर्पिणी के प्रथम आरे) में भारतवर्ष में उन-उन देशों के उन-उन स्थलों में उदार (प्रधान) एवं कुद्दालक यावत् कुश और विकुश से विशुद्ध वृक्षमूल थे; यावत् छह प्रकार के मनुष्य थे। यथा—(१) पद्मगन्ध वाले, (२) मृग (कस्तूरी के समान) गन्ध वाले, (३) अमम (ममत्वरहित), (४) तेजतली (तेजस्वी एवं रूपवान्), (५) सहा (सहनशील) और शनैश्चर (उत्सुक्तारहित होने से धीरेधीरे गजगति से चलने वाले) थे।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरने लगे।
विवेचन—सुषमसुषमाकालीन भारतवर्ष के जीवों-अजीवों के भाव-निरूपण—प्रस्तुत सूत्र में सुषमसुषमा नामक अवसर्पिणीकालिक प्रथम आरे में मनुष्यों एवं पदार्थों की उत्कृष्टता का वर्णन किया गया
कठिन शब्द–उत्तमट्ठपत्ताए—आयुष्यादि उत्तम अवस्था को प्राप्त । तेयलि—तेजवाले और रूप वाले।.
॥ छठा शतक : सप्तम उद्देशक समाप्त।
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक २७७-२७८
(ख) जीवाभिगमसूत्र प्रतिपत्ति २ उत्तरकुरुवर्णन, पृ. २६२ से २८४ तक