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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ८० एक 'व्यवहार अद्धासागरोपम' होता है और दस कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म अद्धापल्योपम का एक 'सूक्ष्म अद्धासागरोपम' होता है। जीवों की कर्मस्थिति, कायस्थिति और भवस्थिति तथा आरों का परिमाण सूक्ष्म अद्धापल्योपम और सूक्ष्म अद्धासागरोपम से मापा जाता है। क्षेत्रसागरोपम के भी दो भेद हैं – व्यवहार और सूक्ष्म । दस कोड़ाकोड़ी व्यवहार क्षेत्रपल्योपम का एक 'व्यवहार क्षेत्रसागरोपम' होता है, और दस कोड़ाकोड़ी सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम का एक 'सूक्ष्म सागरोपम' होता है। सूक्ष्म क्षेत्रपल्योपम एवं सूक्ष्म क्षेत्रसागरोपम से दृष्टिवाद में उक्त द्रव्य मापे जाते हैं। सुषमसुषमाकालीन भारतवर्ष के भाव - आविर्भाव का निरूपण ९. जंबुद्वीवे णं भंते ! दीवे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए उत्तमट्ठपत्ताए भरहस्स वासस्स केरिसए आगारभावपडोगारे होत्था ? गोमा ! बहुसमरमणिजे भूमिभागे होत्था, से जहानामाए आलिंगपुक्खरे ति वा, एवं उत्तर'कुरुवत्तव्वया' नेयव्वा जाव आसयंति सयंति। तीसे णं समाए भारहे वासे तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं हिं बहवे उराला कुद्दाला जाव' कुसविकुसविसुद्धरुक्खमूला जाव छव्विहा मणूसा अणुसज्जित्था, तं०पम्हगंधा १ मियगंधा २ अममा ३ तेयली ४ सहा ५ सणिचारी ६ । सेवं भंते! सेवं भंते । ति० । ॥ छट्ठे सए : सत्तमो सालिउद्देसो समत्तो ॥ [९ प्र.] भगवन् ! इस जम्बूद्वीप नामक द्वीप में उत्तमार्थ- - प्राप्त इस अवसर्पिणीकाल के सुषम- सुषमा नामक आरे में भरतक्षेत्र (भारतवर्ष) के आकार (अचार - ) भाव - प्रत्यावतार ( आचारों और पदार्थों के भावपर्याय- अवस्था) किस प्रकार के थे ? [९ उ.] गौतम ! (उस समय ) भूमिभाग बहुत सम होने से अत्यन्त रमणीय था । जैसे कोई मुरज (आलिंग-तबला) नामक वाद्य का चर्ममण्डित मुखपट हो, वैसा बहुत ही सम भरतक्षेत्र का भूभाग था। इस १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक २७७ (ख) भगवती (हिन्दी - विवेचनयुक्त) भा. २, पृ. १०४० - १०४१ २. जीवाजीवाभिगम सूत्र में उक्त उत्तरकुरुवक्तव्यता इस प्रकार है – 'मुइंगपुक्खरे इवा, सरतले इ वा सरस्तलं सर एवं, करतले इ वा करतलं कर एवं, इत्यादीति । एवं भूमिसमताया भूमिभागगततृण मणीनां वर्णपञ्चकस्य, सुरभिगन्धस्य, मृदुस्पर्शस्य, शुभशब्दस्य, वाप्यादीनां वाप्याद्यनुगतोत्पातपर्वतादीनामुत्पातपर्वताद्यश्रितानां हंसासनादीनां लतागृहदीनां शिलापट्टकादीनां च वर्णको वाच्यः । तदन्ते चैतद् दृश्यम् तत्थ णं बहवे भारया मणुस्सा मपुस्सीओ य आसयंति सयंसि चिट्टंति निसीयंति तुयट्ठेति । इत्यादि' – जीवाभिगम म. वृत्ति । ३. 'जाव' शब्द से कयमाला णट्टमाला इत्यादि तथा वृक्षों के नाम 'उद्दाला: कोद्दालाः मोद्दालाः कृतमालाः नृत्तमालाः वृत्तमाला: दन्तमालाः श्रङ्गमालाः शङ्खमालाः श्वेतमालाः नाम द्रुमगणा : ' समझ लें। (पत्र २६४ -२) । जाव शब्द मूलमंतो कंदमंतो इत्यादि का सूचक है।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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