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________________ ७६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आवलिका का एक क्षुल्लकभवग्रहण होता है। १७ से कुछ अधिक क्षुल्लकभवग्रहण का एक उच्छ्वासनि:श्वासकाल होता है । इसके आगे की संख्या स्पष्ट है। सबसे अन्तिम गणनीयकाल 'शीर्षप्रहेलिका' है, और जो १९४ अंकों की संख्या है.यथा ७५८२६३२५३०७३०१०२४११५७९७३५६९९७५६९६४०६२१८९६६८४८० ८०१८३२९६ इन ५४ अंक पर १४० बिन्दियां लगाने से शीर्षप्रहेलिका संख्या का प्रमाण होता है। यहाँ तक तक का काल गणित का विषय है। इसके आगे का काल औपमिक है। अतिशय ज्ञानी के अतिरिक्त साधारण व्यक्ति उस को गिनती करके उपमा के बिना ग्रहण नहीं कर सकते, इसलिए उसे 'उपमेय' या औपमिक' काल कहा गया है। पल्योपम, सागरोपम आदि औपमिककाल का स्वरूप और परिमाण ६. से किं तं ओवमिए? ओवमिए दुविहे पण्णत्ते, तं जहा–पलिओवमे य, सागरोवमे य। [६ प्र.] भगवन् ! वह औपमिक (काल) क्या है ? [६ उ.] गौतम ! औपमिक (काल) दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार है—पल्योपम और सागरोपम। ७. से किं तं पलिओवमे ? से किं तं सागरोवमे? सत्थेण सुतिक्खेण वि छेत्तुं भेत्तुं च जं किर न सक्का। तं परमाणु सिद्धा वदंति आदि पमाणाणं ॥४॥ अणंताणं परमाणुपोग्गलाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा उस्सहसण्हिया ति वा, सहसण्हिया ति वा, उड्डरेणू ति वा, तसरेणू ति वा, रहरेणु ति वा, वालग्गे ति वा, लिक्खा ति वा, जूया ति वा, जवमझे ति वा, अंगुले ति वा। अट्ठ उस्सण्हसण्हियाओ सा एगा सहसण्हिया, अट्ठ सण्हसण्हियाओ सा एगा उड्डरेणू, अट्ठ उड्ढरेणूओ सा एगा तसरेणू, अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू, अट्ठ रहरेणूओ से एगे देवकुरु-उत्तरकुरुगाणं मणूसाणं वालग्गे, एवं हरिवास-रम्मग-हेमवतएरण्णवताणं पुव्वविदेहाणं मणूसाणं अट्ठ वालग्गा स एगा लिक्खा अट्ठ लिक्खओ सा एगा जूया, अट्ठ जूयाओ से एगे जवमझे, अट्ठ जवमझा से एगे अंगुले, एतेणं अंगुलपमाणेणं छ अंगुलाणि पादो, बारस अंगुलाई विहत्थी, चउव्वीसं अंगुलाणि रयणी, अडयालीसं अंगुलाई कुच्छी, छण्णउतिं अंगुलाणि से एगे दंडे ति वा, धणू ति वा, जूए ति वा, नालिया ति वा, अक्खे ति वा मुसले ति वा, एतेणं धणुप्पमाणेणं दो धणुसहस्साई गाउयं, चत्तारि गाउयाइं जोयणं, एतेणं जोयणप्पमाणेणं जे पल्ले जोयण आयामविक्खंभेणं, जोयण उट्ठे उच्चत्तेणं तं तिउणं सविसेसं परिरएणं । से णं एगाहियबेयाहिय-तेयाहिय उक्कोसं सत्तरत्तप्परूढाणं संसट्टे सन्निचिते भरिते वालग्गकोडीणं, ते णं वालग्गे १. भगवतीसूत्र (हिन्दीविवेचन युक्त) भा. २, पृ. १०३५-१०३६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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