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________________ ७५ छठा शतक : उद्देशक-७ [४ प्र.] भगवन् ! एक-एक मुहूर्त के कितने उच्छ्वास कहे गये है ? [४ उ.] गौतम ! असंख्येय समयों के समुदाय की समिति के समागम से अर्थात् असंख्यात समय मिलकर जितना काल होता है, उसे एक आवलिका' कहते हैं। संख्येय आवलिका का एक उच्छ्वास' होता है और संख्येय आवलिका का एक 'नि:श्वास होता है। [गाथाओं का अर्थ —] हृष्टपुष्ट, वृद्धावस्था और व्याधि से रहित प्राणी का एक उच्छ्वास और एक नि:श्वास – (ये दोनों मिल कर) एक 'प्राण' कहलाते हैं ।। १ । सात प्राणों का एक 'स्तोक' होता है। सात स्तोकों का एक 'लव' होता है । ७७ लवों का एक मुहूर्त कहा गया है ॥ २ ॥ अथवा ३७७३ उच्छ्वासों का एक मुहूर्त होता है, ऐसा समस्त अनन्तज्ञानियों ने देखा है ॥ ३॥ ५. एतेणं मुहुत्तपमाणेणं तीसमुहुत्तो अहोरत्तो, पण्णरस आहोरत्ता पक्खो, दो पक्खा मासो, दो मासा उऊ, तिण्णि उऊ अयणे, दो अयणा संवच्छरे, पंचसंवच्छरिए जुगे, वीसं जुगाई वाससयं, दस वाससयाई वाससहस्सं, सयं वाससहस्साइं वाससतसहस्सं, चउरासीतिं वाससतसहस्साणि से एगे पुव्वंगे, चउरासीतिं पुव्वंगसयसहस्साइं से एगे पुव्वे, एवं तुडिअंगे तुडिए, अडडंगे अडडे, अववंगे अववें, हूहूअंगे हूहूए, उप्पलंगे उप्पले, पउमंगे पउमे नलिणंगे नलिणे, उत्थनिउरंगे अत्थनिउरे, अउअंगे अउए, पउअंगे पउए य, नउअंगे नउए य, चूलिअंगे चूलिआ य, सीसपहेलिअंगे सीसपहेलिया। एताव ताव गणिए। एताव ताव गणियस्स विसए। तेणं परं ओवमिए। [५] इस मुहूर्त के अनुसार तीस मुहूर्त का एक 'अहोरात्र' होता है। पन्द्रह 'अहोरात्र' का एक 'पक्ष' होता है। दो पक्षों का एक 'मास' होता है। दो 'मासों' की एक 'ऋतु' होती है। तीन ऋतुओं का एक 'अयन' होता है। दो अयन का एक सवंत्सर' (वर्ष) होता है। पांच संवत्सर का एक 'युग' होता है। बीस युग का एक वर्षशत (सौ वर्ष) होता है। दस वर्षशत का एक वर्षसहस्र' (एक हजार वर्ष) होता है। सौ वर्ष सहस्रों का एक वर्षशतसहस्र' (एक लाख वर्ष) होता है। चौरासी लाख वर्षों का एक पूर्वांग होता है। चौरासी लाख पूर्वांग का एक 'पूर्व' होता है। ८४ लाख पूर्व का एक त्रुटितांग होता है और ८४ लाख त्रुटितांग का एक 'त्रुटित' होता है। इस प्रकार पहले की राशि को ८४ लाख से गुणा करने से उत्तरोत्तर राशियाँ बनती हैं। वे इस प्रकार हैं—अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनपुरागं, अर्थनूपुर, अयुतांग, अयुत, प्रयुतांग, प्रयुतनयुतांग, नयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग और शीर्षप्रहेलिका। इस संख्या तक गणित है। यह गणित का विषय है। इसके बाद औपमिक काल है (उपमा का विषय है--उपमा द्वारा जाना जाता है, गणित (गणना) का नहीं)। विवेचन—मुहूर्त से लेकर शीर्षप्रहेलिकापर्यन्त गणितयोग्य काल-परिमाण–प्रस्तुत सूत्रद्वय में ४६ भेद वाले गणनीय काल का परिमाण बतलाया गया है। ___ गणनीय काल—जिस काल की संख्या रूप में गणना हो सके, उसे गणनीय या गणितयोग्य काल कहते हैं। काल का सूक्ष्मतम भाग समय होता है। असंख्यात समय की एक आवलिका होती है। २५६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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