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________________ ४२] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र अविरत-प्राणतिपात आदि पापों से विरतिरूप व्रतरहित अथवा तप आदि के विषय में जो विशेष रत नहीं है। अप्रतिहत-प्रत्याख्यातपापकर्मा-(१) जिसने-भूतकालीन पापों को निन्दा गर्दा आदि के द्वारा नष्ट (निराकृत) नहीं किया है तथा जिसने भविष्यकालीन पापों का प्रत्याख्यान-त्याग नहीं किया है। (२) अथवा जिसने मरणकाल से पूर्व तप आदि के द्वारा पापकर्म का नाश न किया हो, मरणकाल आ जाने पर भी आश्रवनिरोध करके पापकर्म का प्रत्याख्यान न किया हो, (३) अथवा जिसने सम्यग्दर्शन अंगीकार करके पूर्वपापकर्म नष्ट नहीं किये और सर्वविरति आदि अंगीकार करके ज्ञानावरणीयादि अशुभकर्मों का निरोध न किया हो। अकाम-शब्द यहाँ इच्छा के अभाव का द्योतक है। कर्मनिर्जरा की अभिलाषा के बिना जो कष्टसहन आदि किया जाये, उससे होने वाली निर्जरा अकामनिर्जरा है। अर्थात् बिना स्वेच्छा या बिना उद्देश्य के भूख, प्यास आदि कष्ट सहना-अकामनिर्जरा है। मोक्षप्राप्ति की कामना-स्वेच्छा या उद्देश्य से ज्ञानपूर्वक जो निर्जरा की जाती है, वह सकामनिर्जरा कहलाती है। दोनों के देवलोक में अन्तर-कई ज्ञानी सकाम निर्जरावाले भी देवलोक में जाते हैं और मिथ्यात्वी अकामनिर्जरा वाले भी, फिर भी दोनों के देवलोकगमन में अन्तर यह है कि अकामनिर्जरा वाले वाणव्यन्तरादि देव होते हैं, जबकि सकाम निर्जरा वाले साधक वैमानिक देवों की उत्तम से उत्तम स्थिति प्राप्त करके मोक्ष की भी आराधना कर सकते हैं। __ वाणव्यन्तर शब्द का अर्थ-वनविशेष में उत्पन्न होने अर्थात् बसने और वहीं क्रीडा करने वाले देव। सेवं भंते! सेवं भंते!त्ति भगवं गोतमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति वंदित्ता नमंसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। ॥पढमे सते पढमो उद्देसो॥ हे भगवन्!'यह इसी प्रकार हैं','यह इसी प्रकार है'; ऐसा कह कर भगवान् गौतम श्रमण भगवान् महावीर को वन्दना करते हैं, नमस्कार करते हैं; वन्दना-नमस्कार करके संयम तथा तप से आत्मा को भावित करते हुए विचरण करते हैं। विवेचन-गौतम स्वामी द्वारा प्रदर्शित वन्दना-बहुमान-प्रथम उद्देशक के उपसंहार में श्री गौतमस्वामी के द्वारा प्रश्न पूछने से पहले की तरह उत्तर-श्रवण के पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर के प्रति कृतज्ञताप्रकाशन के रूप में विनय एवं बहुमान प्रदर्शित किया गया है, जो समस्त साधकों के लिए अनुकरणीय है। ॥प्रथम शतक : प्रथम उद्देशक समाप्त॥ १. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३६-३७
SR No.003442
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages569
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size12 MB
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