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[व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विमात्रा से असंख्यात समय वाले अन्तर्मुहूर्त में होती है। शेष सब वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए, यावत् अनन्तवें भाग का आस्वादन करते हैं।
_ [१७-३] बेइन्दिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गेण्हंति ते किं सव्वे आहारेंति ? नो सव्वे आहारेंति ?
गोयमा! बेइन्दियाणं दुविहे आहारे पण्णत्ते। तं जहा-लोमाहारे पक्खेवाहारे य। जे पोग्गले लोमाहारत्ताए गिण्हंति ते सव्वे अपरिसेसिए आहारेंति। जे पोग्गले पक्खेवाहारत्ताए गिण्हंति तेसिं णं पोग्गलाणं असंखिज्जभागं आहारेंति, अणेगाइं च णं भागसहस्साई अणासाइज्जमाणाइं अफासाइज्जमाणाई विद्धंसमागच्छंति।
[१७-३ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप से ग्रहण करते हैं, क्या वे उन सबका आहार कर लेते हैं? अथवा उन सबका आहार नहीं करते?
[१७-३ उ.] गौतम! द्वीन्द्रिय जीवां का आहार दो प्रकार का कहा गया है, जैसे कि-रोमाहार (रोमों द्वारा खींचा जाने वाला आहार) और प्रक्षेपाहार (कौर, बूंद आदि रूप में मुंह आदि में डाल कर किया जाने वाला आहार)। जिन पुद्गलों को वे रोमाहार द्वारा ग्रहण करते हैं, उन सबका सम्पूर्ण रूप से आहार करते हैं; जिन पुद्गलों को वे प्रक्षेपाहाररूप से ग्रहण करते हैं, उन पुद्गलों में से असंख्यातवाँ भाग आहार ग्रहण किया जाता है, और (शेष) अनेक-सहस्रभाग बिना आस्वाद किए और बिना स्पर्श किये ही नष्ट हो जाते हैं।
[१७-४] एतेसिंणं भंते! पोग्गलाणं अणासाइज्जमाणाणं अफासाइज्जमाणाणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा ४??
गोयमा! सव्वत्थोवा पुग्गला अणासाइज्जमाणा, अफासाइज्जमाणा अणंतगुणा।
[१७-४ प्र.] हे भगवन् ! इन बिना आस्वादन किये हुए और बिना स्पर्श किये हुए पुद्गलों में से कौन-से पुद्गल, किन पुद्गलों से अल्प हैं, बहुत हैं, अथवा तुल्य हैं, या विशेषाधिक हैं ?
[१७-४ उ.] हे गौतम! आस्वाद में नहीं आए हुए पुद्गल सबसे थोड़े हैं, (जबकि) स्पर्श में नहीं आये हुए पुद्गल उनसे अनन्तगुणा हैं।
[१७-५] बेइंदिया णं भंते! जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति तेणंतेसिंपुग्गला कीसत्ताए भुज्जो भुजो परिणमंति?
गोयमा! जिभिदिय-फासिंदिय-वेमायत्ताए भुज्जो भुज्जो परिणमंति। __ [१७-५ प्र.] भगवन्! द्वीन्द्रिय जीव जिन पुद्गलों को आहाररूप में ग्रहण करते हैं, वे पुद्गल उनके किस रूप में बार-बार परिणत होते हैं ?
[१७-५ उ.] गौतम! वे पुद्गल उनके विविधतापूर्वक जिह्वेन्द्रिय रूप में और स्पर्शेन्द्रियरूप में बार-बार परिणत होते हैं। १. यहाँ'अप्पा वा' के आगे ४ का अंक 'बहुवा वा, तुल्ला वा, विसेसाहिया वा' इन शेष तीन पदों का सूचक है।